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ॐ पाँचवें गणधर श्रीसुधर्मास्वामी ॐ 'जैसा यहाँ वैसा ही जन्म परभव में' इसका
'सन्देह-संशय' श्रीइन्द्रभूति से श्रीव्यक्त पर्यन्त चारों विद्वान् विप्रों की प्रव्रज्या सुनकर पाँचवें श्रीसुधर्म नाम के पण्डित ने विचार किया कि 'जो श्रीइन्द्रभूत्यादि चारों विद्वानों के पूज्य हैं, वे मेरे भी पूज्य हैं। मैं भी शीघ्र उनके पास जाकर अपने मन का सन्देह-संशय दूर करू ।' “जो इस जन्म में होता है वैसा ही अन्य जन्म में भी होता है ?" इस सन्देह से ग्रस्त होकर वे अपनी शंका के समाधान हेतु अपने पाँच सौ शिष्यों सहित प्रभु के पास आये। उसी समय भगवान ने मधुरवाणी में उसके नाम-गोत्र का उच्चारण करते हुए कहा
यो यादृशः स तादृशः, इति सन्दिग्धं सुधर्मनामानम् । ऊचे विभुर्यथास्थं, वेदार्थं किं न भावयसि ॥
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