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अर्थात्-'पृथ्वी देवता है, जल देवता है' इत्यादि वेदवाक्यों से पृथ्वी, जल इत्यादि पाँच भूतों की सत्ता सिद्ध होती है । इसलिये तू सन्देह-संशय में पड़ गया है कि-'पाँच भूत हैं कि नहीं ?' ___"हे व्यक्त ! यह तेरा सन्देह-संशय असत्य-अयुक्त है । कारण कि 'स्वप्नोपमं वै सकलम्' इत्यादि । (समस्त विश्व स्वप्न समान ही है) यह वेद पद गूढार्थ युक्त है । मुमुक्षु जीवों के लिये आत्मसम्बन्धी अध्यात्म चिन्तवन करते समय कनक और कामिनी आदि के संयोग का अनित्यपना सूचन करने के लिये है। अर्थात्-सुवर्ण, धन, पुत्र, स्त्री इत्यादि का सम्बन्ध-संयोग अस्थिर है, असार है और कटु फलविपाक देने वाला है। इसलिये उनकी आसक्ति अर्थात् उन पर का ममत्व भाव त्यजकर, आत्ममुक्ति के लिये यत्न-प्रयत्न करना चाहिये। इस तरह वैराग्य की वृद्धि के लिये प्रात्मा को बोध देने वाले ये वेदपद हैं; न कि पंच भूतों का निषेध सूचित करने वाले हैं।
"सारांश यह है कि संसार में परिभ्रमण करते हुए प्रात्मा को पुद्गल भाव से खसेड़ करके आत्मस्वभाव में लाने के लिये तथा वैराग्य पमाड़ने के लिये यह विश्व
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