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रचना करने की भावना आपके अन्तःकरण में स्फुरायमान हुई । पूज्य श्रीकल्पसूत्र सुबोधिका टीका, विशेषआवश्यक सूत्र प्रमुख तथा गणधरवाद सम्बन्धी प्रकाशित थयेल विविध साहित्य का अवलोकन करने के बाद, मुख्यरूप में श्रीकल्पसूत्र सुबोधिका टीका आदि का आलम्बन लेकर आपने 'श्रीगणधरवादकाव्य' संस्कृतश्लोक में रचना प्रारम्भ किया । साथ में 'गरधरवाद' संस्कृत गद्य में तथा हिन्दी भाषा में भी प्रालेखन कार्य शुरू किया । अहर्निश सर्जन कार्य में मग्न रहते हुए प्रापश्री ने श्रीदेव-गुरु-धर्म के पसाय से यह कार्य शीघ्र पूर्ण किया ।
इस ग्रन्थ को शीघ्र प्रकाशित करने की सत् प्रेरणा करने वाले परमपूज्य प्राचार्य म. सा. के पट्टधर-शिष्यरत्नमधुरभाषी संयमी पूज्य उपाध्यायजी महाराज श्रीविनोदविजयजी गरिणवर्य हैं ।
इस ग्रन्थ का सम्पादन कार्य करने वाले पूज्यपाद आचार्य म. सा. के विद्वान् शिष्यरत्न कार्यदक्ष पूज्य मुनिराज श्रीजिनोत्तमविजयजी म.सा. हैं ।
इस ग्रन्थ का उपादेय लिखने वाले जालोर निवासी पण्डित श्रीहीरालालजी शास्त्री एम. ए. हैं |
ग्रन्थ के
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