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होती है। जैसे-विश्व में प्रात्मा की मान्यता परापूर्व से चली आ रही है, ऐसा ज्ञानियों, विद्वानों, बुद्धिशालियों ने कहा है, इतना ही नहीं; किन्तु सामान्य-पामर जनता भी बोल रही है कि जीवन्त है अर्थात् शरीर में जीव है, अभी तक शरीर में से जीव गया नहीं है-पात्मा चलो नहीं गई है; इत्यादि। यह कथन ऐतिह्य प्रमाण-ऐतिहासिक प्रमाण से जीव-आत्मा की सिद्धि बता रहा है। इस तरह उपर्युक्त सभी प्रमारणों से आत्मा की सिद्धि अवश्य ही होती है। अर्थात् आत्मा-जीव अवश्य ही सिद्ध होता है। आत्मा के सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न
दर्शनों की मान्यता विश्व में अनेक दर्शन हैं। उनमें षट्दर्शन सुप्रसिद्ध हैं। आत्मा के सम्बन्ध में षट्दर्शनों की मान्यता भिन्नभिन्न प्रकार की है। उनका यहाँ संक्षेप में दिग्दर्शन कराया जा रहा है
(१) न्याय-वैशेषिक दर्शन-इस दर्शन वाले 'जीवआत्मा' में ज्ञानादिक गुण मानते हैं, किन्तु वह ज्ञानादि गुण सहज नहीं प्रागन्तुक, कारणवशाद् नवीन उत्पन्न होने वाले गुण स्वरूप मानते हैं। कारण न हो तो कोई भी
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