SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 294
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थिति का वर्णन करता है। पूर्व भव का-पूर्व जन्म का इस भव में स्मरण करने वाला और पूर्व भव की अपनी परिस्थिति का भी वर्णन करने वाला सचेतन अात्मा (१६) इस संसार में भव-स्थिति परिपाक होते ही संयम की साधना में सकल कर्म का क्षय करके मोक्ष के शाश्वत सुख को पाने वाला सचेतन भव्य आत्मा ही होता है। वही मोक्ष में जाता है और शाश्वत सुख पाता है । तथा अपना भवभ्रमण एवं जन्म-मरण इत्यादि मिटाता है। उपमान प्रमाण से आत्मा की सिद्धि जिन्होंने गवय नाम के प्राणी को नहीं देखा है वे 'गोः सदृशो गवयः' गौ के समान गवय है। अर्थात् गाय की उपमा देकर गवय की पहचान करते हैं। वहाँ तो तुलना का सवाल है, किन्तु इस जगत् में प्रात्मा के जैसा कोई अन्य पदार्थ ही नहीं है। फिर भी आत्मा की तुलना वायु के साथ की जाती है। जैसे-देह-शरीर में सुस्ती, उदर-पेट का फूलना तथा वायु छूटना इत्यादि पर से अन्दर के अदृश्य वायु का बल निश्चित होता है। इसी तरह देह-शरीर में होती इष्ट-अनिष्ट प्रवृत्तियों का प्रभाव
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy