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________________ ॐ सर्व गणधरों का साधारण चैत्यवन्दन ॥ सयल गरगधर सयल गणधर , जेह जग सार ; सकल जिनेसर पय कमले , रही भुंग परे जेह लीरणा , जिनमतनी त्रिपदी लही , थया जेह स्याद्वादे प्रवीणा ; वासक्षेप जिनवर करे ए , इन्द्र महोत्सव सार , उदय अधिक दिन दिन हुवे, ज्ञानविमल गुरणधार ॥१॥ ॐ सर्व गणधरों की साधारण स्तुति के चौदसयां बावन गणधर , सवि जिनवरनो ए परिवार ; त्रिपदीना कीधा विस्तार , __ शासन सुर सवि सान्निध्यकार ॥१॥ ( यह स्तुति चार बार कहनी चाहिए ।) ऊ सर्व गणधरों का साधारण स्तवन ॥ ( सकल सदा फल पास-ए देशी में ) वंदु सवि गणधार , सवि जिनवरना ए सार ; सम चउरस संठाण , सविने प्रथम संघयण ॥१॥ त्रिपदीने अनुसारे, विरचे विविध प्रकारे ; संपूरण श्रुतना भरिया, सवि भवजलनिधि तरिया ॥२॥ ( १२७ )
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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