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उपादेय १
विद्वान् जैनाचार्य श्रीसुशीलसूरीश्वरजी महाराज द्वारा अनूदित एवं मौलिक भावानुवाद युक्त यह 'गरणधरवाद' रचना अत्यन्त श्रेष्ठ एवं प्रत्येक तत्त्ववेत्ता एवं मुमुक्षु के लिये उपादेय ग्रन्थ है।
जहाँ हमारे मनोजन्य प्रश्नों का निराकरण हो जाय ग्रन्थियों का छेदन हो जाय, वहीं हमें सच्चे प्रात्मज्ञान की प्राप्ति होनी प्रारम्भ हो जाती है ।
गणधरवाद में भी पण्डितप्रवर ग्यारह विद्वान् ब्राह्मणों के जन्म-मरण, स्वर्ग-नरक, मोक्ष-पूर्वभव तथा पुण्य एवं पाप के विषय में जिज्ञासापूर्ण सन्देह थे जिनका वेदपदों के द्वारा ही प्रभु ने निराकरण कर उनको आत्मज्ञान के प्रति दीक्षित किया था। भगवान महावीर वेदों के अर्थ की गवेषणापूर्वक व्याख्या करने वाले थे।
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