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________________ ११ नवकार गिनना, फिर खड़े होकर 'श्रीगौतमस्वामी गणधर अाराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं०' कहके, प्रगट एक लोगस्स० कहना। इस प्रकार प्रथम गणधर भगवन्त की वन्दन-विधि पूर्ण हुई। ___इसी भाँति शेष दस गणधर भगवन्तों की भी वन्दना करनी, परन्तु प्रत्येक गणधर भगवन्त के नाम, नमस्कार, चैत्यवन्दन, स्तुति और स्तवन अलग-अलग कहना और भी चार स्तुतियों में से पीछे की तीन गाथाएँ वही रखें और प्रथम स्तुति-थोय प्रत्येक गणधर की अलग की हुई है, वह कहना। इस तरह सर्वत्र विधि जानना । (२) म द्वितीय गणधर श्रीअग्निभूतिजी का देववंदन के * चैत्यवंदन के कर्मतरणो संशय धरी , जिनचरणे आवे ; अग्निभूति नामे करी, तव ते बोलावे ॥१॥ एक सुखी एक छे दुःखी, एक किंकर स्वामी ; पुरुषोत्तम एके करी , केम शक्ति पामी ॥ २॥ कर्म तरणा परभावथी ए , सकल जगत मडारण ; ज्ञानविमलथी जारणीये , वेदारथ सुप्रमाण ॥ ३ ॥ ( १०७ )
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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