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१६. ज्ञान का
अभिमान
१७. संशय
२०. दीक्षा
मतिज्ञानादि चार ज्ञान के बाद पंचम केवलज्ञान ।
२१. दीक्षातिथि
: गृहस्थावस्था में 'सर्वज्ञोऽहम्' अर्थात् 'मैं सर्वज्ञ हूँ' ऐसा अभिमान था ।
१८. शिष्यगण
: ३०० ।
१६. गृहस्थावस्था : १५ वर्ष तक संसार में अर्थात् गृहस्थावास में रहे ।
: 'क्या मोक्ष है ?' अर्थात् 'मोक्ष है कि नहीं ?" यह संशय था ।
: १६ वर्ष की ( अन्य १० गणधरों से छोटी) वय (उम्र) में जैनधर्म की पारमेश्वरी प्रव्रज्या (दीक्षा) अपने ३०० शिष्यों के साथ, अपापापुरी के महसेन वन में श्रमण भगवान महावीर परमात्मा से ग्रहण की । बालसंयमी हुए ।
: वैशाख सुदी (११) ग्यारस | ( उसी दिन श्रमरण भगवान महावीर परमात्मा के ग्यारहवें शिष्य बने, प्रभु से 'उवन्नेइ वा - विगमेइ वा -
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