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१६. गृहस्थावस्था : ४६ वर्ष तक संसार में अर्थात्
गृहस्थावस्था में रहे। २०. दीक्षा : ४७ वें वर्ष में जैनधर्म की पारमेश्वरी
प्रव्रज्या (दीक्षा) अपने ३०० शिष्यों सहित अपापापुरी के महसेन वन में श्रमण भगवान महावीर परमात्मा से
ग्रहण की। २१. दीक्षा तिथि : वैशाख सुदी (११) ग्यारस ।
(उसी दिन श्रमण भगवान महावीर परमात्मा के नौवें शिष्य बने और प्रभु से 'उवन्नेइ वा- विगमेइ वाधुवेइ वा' रूप त्रिपदी सुन कर नौवें
गणधर हुए। २२. दीक्षा गुरु : सर्वज्ञ विभु श्रमण भगवान महावीर
परमात्मा । २३. दीक्षा के दिन : श्री इन्द्रभूति तथा श्री अग्निभूति ... गुरुबन्धु प्रादि १० हुए। २४. दीक्षा के दिन : सहदीक्षित ३०० शिष्य । शिष्य-परिवार
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