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[अर्थात् सत् काव्य का दृष्ट प्रयोजन प्रीति है और अदृष्ट प्रयोजन कीर्ति है ।]
'श्री गणधर काव्यम्' के रचनाकार का उद्देश्य है, 'जगत् के सभी प्राणी प्रीति-सूत्र में गुम्फित हो जाएँ, सब सुखी हों, मानव में मानवता का प्रकाश प्रदीप्त हो, दानवता का नाश हो, घृणा पर प्रेम की, लोभ पर सन्तोष की, मान (अहंकार) पर विनय की और क्रोध पर क्षमा की विजय हो। 'श्री गणधर काव्यम्' कृति में यह उद्देश्य दर्पणवत् प्रतिबिम्बित है।
शैली : आचार्यश्री का विविध कविरूप भाव, भाषा और शैली के रंग-बिरंगे फलक पर चित्रित हुआ है। देववाणी संस्कृत में रचित काव्य-शैली की रमणीयता निहारिये :
जयतु जयतु भास्वत् केवलानन्दनन्दी, विकसितसकलार्थः दीप्तपुण्यप्रतापः। तुरियपथप्रयोक्ता विश्ववन्द्योदयश्रीः, भवतु शिवगुणानां वर्द्धमानः जिनेन्द्र ॥१।।
[मङ्गलाचरणम्]
इसमें थोड़े से शब्दों में विभु को समस्त विभुता, विश्ववंद्यता, माङ्गल्य, अनन्त करुणा आदि का पूर्ण चित्र प्रकट हरा है। इससे अंग्रेजी के महान् कवि मिल्टन की काव्यविषयक यह परिभाषा सही प्रतीत होती है कि 'महाकवि की सफलता इसी में है कि वह थोड़े से शब्दों में महानतम बात कह सके ।'
पूज्य जैनाचार्य गुजराती भाषाभाषी हैं, परन्तु उन्होंने 'बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय' भाव से हिन्दी में अनेक ग्रन्थ रचे हैं और
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