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१६. गृहस्थावस्था : ५० वर्ष तक संसार में अर्थात्
गृहस्थावस्था में रहे। २०. दीक्षा : ५१ वें वर्ष के प्रारम्भ में जैनधर्म
की पारमेश्वरी प्रव्रज्या (दीक्षा) अपने ५०० शिष्यों सहित अपापापुरी के महसेन वन में श्रमण भगवान महावीर परमात्मा से
ग्रहण की। २१. दीक्षा तिथि : वैशाख सुदी (११) ग्यारस (उसी
दिन श्रमण भगवान महावीर परमात्मा के चतुर्थ-चौथे शिष्य बने
और प्रभु के पास 'उवन्नेइ वाविगमेइ वा-धुवेइ वा' रूप त्रिपदी
सुन कर चौथे गणधर हुए । २२. दीक्षा गुरु : सर्वज्ञ विभु श्रमण भगवान महावीर
परमात्मा । २३. दीक्षा के दिन : श्री इन्द्रभूति तथा श्री अग्निभूति
गुरुबन्धु अादि १० हुए। २४. दीक्षा के दिन : सहदीक्षित ५०० शिष्य । शिष्य-परिवार
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