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________________ भगवान महावीर की नीति-अवधारणाएँ / 61 उपसंहार इस सम्पूर्ण विवेचन से स्पष्ट है कि भगवान महावीर ने नीति के नये आधारभूत सिद्धान्त निर्धारित किये। संवर, निर्जरा, अनाग्रह, यतना, समता आदि ऐसे घटक हैं जिन पर अन्य विद्वानों की दृष्टि न जा सकी। भगवान महावीर ने इन पर विस्तृत चिन्तन किया है। उन्होंने अनाग्रह, अनेकांत, यतना, अप्रमाद, समता, विनय आदि नीति के विशिष्ट तत्व मानव को दिये। सामूहिकता को संगठन का आधार बताया और श्रमण एवं श्रावक को इसके पालन का संदेश दिया। संग्रह से दान को श्रेष्ठ बताया और दान से भी संयम (त्याग) को सर्वोत्तम कहा-यह महावीर का नया व स्वतन्त्र चिन्तन था। __सामान्यता, सभी धर्मों ने धर्म तत्व को जानने के लिए मानव को बुद्धि प्रयोग की आज्ञा नहीं दी। यही कहा कि जो धर्म-प्रवर्तकों ने कहा है, हमारे शास्त्रों में लिखा है, उसी पर विश्वास कर लो। किन्तु भगवान महावीर मानव को अन्धविश्वासी नहीं बनाना चाहते थे, मानव स्वतन्त्रता के पक्षधर थे अतः 'पन्ना समक्खिए धम्म' कहकर उसके नैतिक धरातल को ऊँचा उठाया। आत्महित के साथ-साथ लोकहित का भी उपदेश दिया। तत्कालीन एकांगी विचारधाराओं का समन्वय अनेकांतवाद का सिद्धान्त देकर किया। सामाजिक, धार्मिक दृष्टि से रसातल में जाते हुए नैतिक मूल्यों की ठोस आधार पर प्रतिष्ठा की। इस प्रकार भगवान महावीर ने नीति के ऐसे दिशा निर्देशक सूत्र दिये, जिनका स्थायी प्रभाव हुआ और समस्त नैतिक चिन्तन पर उनका प्रभाव आज भी स्पष्ट परिलक्षित होता है।
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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