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नीतिशास्त्र की परिभाषा
प्राचीनतम जैन ग्रन्थों के परिशीलन से ज्ञात होता है कि उस युग में 'नीति' शब्द जनसाधारण में प्रचलित था, इसलिए उसकी परिभाषा पर कभी किसी ने विचार ही नहीं किया। भगवान ऋषभदेव द्वारा प्रवर्तित हाकार आदि नीति को ही उस युग में नीति शब्द से जाना जाता था जिसमें राजनीति व समाजनीति का ही व्यापक अर्थ निहित था। बाद में नीति शब्द को मर्यादा, व्यवस्था और सामाजिक नियमों के अर्थ में समझा जाने लगा-'नीति मर्यादायाम्।।" ज्ञातासूत्र में नीति के साम-दाम-भेद-ये तीन अंग बताये हैं-'तिविहा णीइ पण्णत्ता-सामे, दामे, भेए। इससे भी यही ध्वनित होता है कि तब तक नीति का मुख्य सम्बन्ध राजनीतिशास्त्र से ही रहा है। 'नीतिशास्त्र' : शब्द-व्युत्पत्ति की दृष्टि से
'नीतिशास्त्र' शब्द दो शब्दों का संयोग है-नीति और शास्त्र।
व्याकरण की दृष्टि से नीति का व्युत्पत्तिजन्य अर्थ है-ले चलना। अर्थात कुमार्ग से सुमार्ग की ओर ले जाना-"नयनान्नीतिरुच्यते।"
शब्द कोष के अनुसार-"निर्देशन, प्रबन्ध, आचरण, चाल-चलन, कार्यक्रम, शालीनता, व्यवहार कुशलता, योजना, उपाय, आचारशास्त्र आदि सभी नीति शब्द से जाने जा सकते हैं।' 1. अभिधान राजेन्द्र कोष, भाग 4, पृ. 2152 2. ज्ञाता सूत्र, 111 3. शुक्रनीति, 1/56; तथा कामंदकीय नीतिसार, 2/15 4. आप्टे : संस्कृत-हिन्दी कोष, देखें-नीति शब्द ।