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________________ भगवान महावीर की नीति-अवधारणाएँ / 57 (जैनों की सभी लौकिक विधियाँ उसी सीमा तक प्रमाण हैं, जब तक सम्यक्त्व की हानि न हो और व्रतों में दोष न लगे।) अतः श्रावक व्रत रूपी सिक्के के दो पहलू होते हैं-(1) धर्मपरक और (2) नीतिपरक। श्रावक व्रतों के अतिचार' भी इसी रूप में संदर्भित हैं। उनमें भी नीतिपरक तत्त्वों की विशेषता है। ठाणांग सूत्र में जो अनुकंपा दान, संग्रहदान, भयदान, कारुण्यदान, लज्जादान, गौरवदान, अधर्मदान, धर्मदान, करिष्यतिदान और कृतदान-यह दश प्रकार के दान बताये गये हैं, वे भी प्रमुख रूप से लोकनीति परक ही हैं। उनकी उपयोगिता लोकनीति के सन्दर्भ में असंदिग्ध है। इसी प्रकार ठाणांग सूत्र में वर्णित दस धर्मों में से ग्रामधर्म, नगरधर्म, राष्ट्रधर्म, कुलधर्म आदि का प्रत्यक्ष सम्बन्ध नीति से है। उक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि जैन नैतिकदृष्टि बिन्दु स्वहित के साथ-साथ लोकहित को भी लेकर चलता है। गृहस्थ जीवन में तो लोकनीति को स्वहित से अधिक ऊँचा स्थान प्राप्त होता है। ___भगवान के उपदेशों में निहित इसी समन्वयात्मक बिन्दु का प्रसारीकरण एवं पुष्पन-पल्लवन बाद के आचार्यों द्वारा हुआ। __ आचार्य हरिभद्रकृत धर्मबिन्दु प्रकरण और आचार्य हेमचन्द्रकृत योगशास्त्र में जो मार्गानुसारी के 35 बोल दिये गये हैं, वे भी सद्गृहस्थ के नैतिक जीवन से सम्बन्धित हैं। 1. श्रावक व्रत और उनके अतिचारों का नीतिपरक विवेचन इसी पुस्तक के 'नैतिक उत्कर्ष' अध्याय में किया गया है। 2. दसविहे दाणे पण्णत्ते, तंजहाअणुकंपा संगहे चेव, भये कालुणिये इ य। लज्जाए गारवेण य, अहम्मे पुण सत्तमे। धम्मे य अठ्ठमे वुत्ते, काहीद य कतंति य। -ठाणांग, 10/745 3. दसविहे धम्मे पण्णत्ते तं जहा1. गामधम्मे 2. नगरधम्मे 3. रट्ठधम्मे 4. पासंडधम्मे 5. कुलधम्मे 6. गणधम्मे 7. संघधम्मे 8. सुयधम्मे 9. चारित्तधम्मे 10. अत्यिकायधम्मे। -ठाणांग, 10/760 4. आचार्य हरिभद्र-धर्मबिन्दु प्रकरण 1 5. आचार्य हेमचन्द्र-योगशास्त्र, 1/47-56 6. मार्गानुसार 1 के 35 बोलों और श्रावक के 21 गुणों का नीति परक विवेचन इसी पुस्तक में आगे किया गया है।
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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