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________________ भगवान महावीर की नीति-अवधारणाएँ / 53 समाज व्यवहार तथा लोक में शांतिहेतु समता की नीति की उपयोगिता सभी के जीवन में प्रत्यक्ष है, अनुभवगम्य है। समता नीति का हार्द है-सभी प्राणियों का सुख-दुःख अपने ही सुख-दुःख के समान समझना। सभी सुख चाहते हैं, दुःख कोई भी नहीं चाहता। इसका आशय यह है कि ऐसा कोई भी काम न करना जिससे किसी का दिल दुखे और यह समता नीति द्वारा ही हो सकता है। अनुशासन एवं विनय नीति विनय एवं अनुशासन संसार की ज्वलन्त समस्यायें हैं। अनुशासन समाज में सुव्यवस्था का मूल कारण है और विनय जीवन में सुख-शान्ति प्रदान करती है। यद्यपि विनय तथा अनुशासन को सभी ने महत्व दिया है किन्तु भगवान महावीर ने इसे जीवन का आवश्यक अंग बताया है। उन्होंने तो विनय को धर्म का मूल-'विणयमूले धम्मे' कहा है। विनय का लोक-व्यवहार मे अत्यधिक महत्व है। एक भी अविनयपूर्ण वचन कलह और क्लेश का वातावरण उत्पन्न कर देता है जबकि विनय-नीति के पालन से संघर्ष की अग्नि शांत हो जाती है, वैर का दावानल सौहार्दयता में परिणत हो जाता है। विनय जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता की कुंजी है। लेकिन विनय नीति का पालन वही कर पाता है जो अनुशासित (disciplined) हो; अनुशासन पाकर कुपित न हो। इसीलिए भगवान महावीर ने कहा अणुसासिओ न कुप्पिजा। अनुशासन में रहते हुए कुपित/क्षुभित न हो। विणए ठविज्ज अप्पाणं। विनय में अपने को स्थिर रखें। विनय नीति का पालन करें। गुरुजनों, माता-पिता आदि की विनय परिवार में सुख-शांति का वातावरण निर्मित करतीहै तथा मित्रों, सम्बन्धियों, समाज के सभी व्यक्तियों के प्रति विनययुक्त व्यवहार, यश-कीर्ति तथा प्रेम एवं उन्नति की स्थिति के निर्माण में सहायक होता है। 1. सब्दे जीवा सुहसाया....दुक्ख पडिकूला-आचारांग।1।1 2. उत्तराध्ययन सूत्र, 119 3. उत्तराध्ययन सूत्र, 118
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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