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52 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
सावधानीपूर्वक व्यवहार से विग्रह की स्थिति नहीं आती, परस्पर मन-मुटाव नहीं होता, किसी प्रकार का संघर्ष नहीं होता ।
यतना का एक अर्थ है-यत्नपूर्वक, सावधान - एलर्ट - चौकन्ने होकर कार्य करो। दूसरा अर्थ है - यतना - उस कार्य में विवेक एवं संयम रखो, अपने आप पर सेल्फ कन्ट्रोल - आत्मनियंत्रण करके काम करो ।
समता नीति
समता भाव अथवा साम्यभाव भगवान महावीर या जैन धर्म की विशिष्ट नीति है । आचार और विचार में यह अहिंसा की पराकाष्ठा है । भगवान महावीर ने आचार-व्यवहार की नीति बताते हुए कहाअप्प समे मन्निज्ज छप्पिकाए
छह कार्य के जीवों को अपनी आत्मा के समान समझो।
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छह काय से यहां अभिप्राय मनुष्य, पशु, पक्षी, देव, छोटे से छोटे कृमि और यहां तक कि जल, वनस्पति, पेड़-पौधे आदि से है ।
जैन धर्म इन सभी में आत्मा मानता है और इसीलिए इनको दुःख देना, अनीति में परिगणित किया गया है तथा इन सबके प्रति समत्वभाव रखना जैन नीति की विशेषता है ।
क्रूर-कुमार्गगामी, अपकारी, व्यक्तियों के प्रति भी समता का भाव रखना चाहिए, यह जैन नीति है । भगवान पार्श्वनाथ पर उनके साधनाकाल में कमठ ने उपसर्ग किया है धरणेन्द्र ने इस उपसर्ग को दूर किया । किन्तु प्रभु पार्श्वनाथ ने दोनों पर ही समता भाव रखा।
मनोविज्ञान और प्रकृति का नियम है कि क्रिया की प्रतिक्रिया होती है और फिर प्रतिक्रिया की प्रतिक्रिया । इस प्रकार यह क्रिया-प्रतिक्रिया का एक चक्र ही चलने लगता है । इसको तोड़ने का एक ही उपाय है - क्रिया की प्रतिक्रिया होने ही न दी जाय ।
किसी एक व्यक्ति ने दूसरे को गाली दी, सताया, अपकार किया या दुष्टतापूर्ण व्यवहार किया, उसकी इस क्रिया की प्रतिक्रियास्वरूप वह दूसरा व्यक्ति भी गाली दे अथवा दुष्टतापूर्ण व्यवहार करे तो संघर्ष की, कलह की स्थिति बन जाय और यदि वह समता का भाव रखे, समता नीति का पालन करे तो संघर्ष शांति में बदल जायेगा ।