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________________ भगवान महावीर की नीति-अवधारणाएँ / 51 बहू पति पर अपना अधिकार मानती है, वह सास के अधिकार को भूल जाती है। यदि वह अनेकांत नीति का आश्रय ले, सभी के अधिकारों को स्वीकार करे तो पारिवारिक शांति कायम रहे। यही बात वर्ग-संघर्ष के लिए है। समाज, देश अथवा राष्ट्र का एक वर्ग अपने ही दृष्टिकोण से सोचता है, उसी को उचित मानता है तथा अन्यों के दृष्टिकोण को अनुचित। वह उनके दृष्टिकोण का आदर नहीं करता, इसी कारण पारस्परिक संघर्ष होता है। ___ आर्य स्कन्दक' ने भगवान महावीर से पूछा-लोक शाश्वत है या अशाश्वत, अन्तसहित है या अन्तरहित? लोक शाश्वत भी है और अशाश्वत भी। यह सदाकाल से रहा है, अब भी है और भविष्य में भी रहेगा, कभी इसका नाश नहीं होगा। इस अपेक्षा से यह शाश्वत है। साथ ही इसमें जो द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की अपेक्षा परिवर्तन होता है, उस अपेक्षा से अशाश्वत भी है। इसी प्रकार भगवान ने स्कन्दक के सभी प्रश्नों के उत्तर दिये। इस अनेकांत नीति से प्राप्त हुए उत्तरों से स्कन्दक सन्तुष्ट हुआ। यदि भगवान अनेकांत नीति से उत्तर न देते तो स्कंदक भी संतुष्ट न होता और सत्य का भी अपलाप होता। सत्य यह है कि वस्तु का स्वभाव ही ऐसा है। वस्तु स्थिर भी रहती है उसी क्षण उसमें काल आदि की अपेक्षा परिवर्तन होते भी रहते हैं। आज का विज्ञान भी इस तथ्य को स्वीकार कर चुका है, तभी आइन्सटीन आदि वैज्ञानिकों ने अनेकांत नीति की सराहना की है, भ. महावीर की अनुपम देन माना है और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए इसे बहुत उपयोगी स्वीकार किया। आइन्स्टीन का Theory of Relativity तो स्पष्ट सापेक्षवाद अथवा अनेकांत ही है। यतना नीति यतना का अभिप्राय है-सावधानी। नीति के सन्दर्भ में सावधानी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक है। भगवान ने बताया कि सोते-जागते, चलते, उठते, बैठते, बोलते-प्रत्येक क्रिया को यतनापूर्वक करना चाहिए। 1. भगवती 2, 1 2. दशवैकालिक, 4/- जयं चरे जयं चिढं..
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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