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भगवान महावीर की नीति-अवधारणाएँ / 49
देवकी के हृदय में यह शंका उत्पन्न हो गयी कि ये दो ही साधु मेरे घर भिक्षा के लिए तीन बार आये हैं। जबकि श्रमण नियम से एक दिन में दो बार भिक्षा के लिए नहीं जाता।
देवकी की इस शंका को मिटाने के लिए साधुओं ने अपना पूर्व-परिचय दिया जो कि उस परिस्थिति में अनिवार्य था।
इसीलिए भगवान ने साधु के लिए उत्सर्ग और अपवाद-दो मार्ग बताये हैं। उत्सर्ग (सामान्य) मार्ग में तो पूर्व-परिचय साधक देता नहीं, लेकिन अपवाद मार्ग (विशेष परिस्थिति) में यदि परिस्थिति उत्पन्न हो जाए तो दे सकता है।
यह अपवाद-मार्ग जैन साध्वाचार में नीति का द्योतक है।
इसी प्रकार केशी श्रमण ने जब गौतम गणधर से भ. पार्श्वनाथ की सचेलक और भ. महावीर की अचेलक धर्म-नीति के भेद के विषय में प्रश्न किया तो गणधर गौतम का उत्तर नीति का परिचायक है। उन्होंने बताया कि सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरित्र-तप की साधना ही मोक्षमार्ग है। वेष तो लोकप्रतीति के लिए होता है।
इसी प्रकार के अन्य दृष्टान्त श्रमणाचार सम्बन्धी दिये जा सकते हैं, जो सीधे व्यावहारिक-नीति अथवा लोकनीति से सम्बन्धित हैं।
अब हम भगवान महावीर की नीति-विशिष्ट नीति का वर्णन करेंगे, जिस पर अन्य विचारकों ने बिलकुल भी विचार नहीं किया है, और यदि किया भी है तो बहुत कम किया है। भगवान महावीर की विशिष्ट नीति
भ. महावीर की विशिष्ट नीति के मूलभूत प्रत्यय हैं-अनाग्रह, यातना, समता, अप्रमाद, उपशम आदि। अनाग्रह नीति
अनाग्रह का अभिप्राय है-अपनी बात का, धारणा का आग्रह न करना। भगवान महावीर तथा अन्य सभी तीर्थंकरों और भगवान महावीर के सभी अनुयायियों-श्रमण साधुओं की यह नीति रही है कि वे जिज्ञासु के सामने सत्य-तथ्य खोलकर रख देते हैं; तर्क, हेतु, आगम, प्रमाण आदि से वस्तु तत्व को
1. अन्तगड दशा सूत्र
2. उत्तराध्ययनसूत्र, 23/29-32.