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________________ भगवान महावीर की नीति-अवधारणाएँ - जिस प्रकार धार्मिक जीवन का आधार आचार है, उसी प्रकार व्यावहारिक जीवन की रीढ़ नीति है और यह भी तथ्य है कि जिस प्रकार बिना नींव के मकान की रचना नहीं हो सकती वैसे ही बिना नैतिक जीवन के धार्मिक जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। नीति, धर्म का आधार है। यही कारण है कि प्रत्येक धर्म-प्रवर्तक, धर्मोपदेशक और धर्म-सुधारक ने धर्म के साथ नीति का भी उपदेश दिया, जनसाधारण को नैतिक जीवन जीने की प्रेरणा दी। हाँ, यह अवश्य है कि धर्म, धर्म के मूल्य, धर्म के सिद्धान्त स्थायी हैं, सदा समान रहते हैं, उनमें देशकाल की परिस्थितियों के कारण परिवर्तन नहीं होता; जैसे 'अहिंसा धर्म है' यह संसार में सर्वत्र और सभी कालों में धर्म ही रहेगा। किन्तु नीति, समय और परिस्थिति-सापेक्ष है, इसमें परिवर्तन आ सकता है। जो नीति सिद्धान्त भारतीय परिस्थितियों के लिए उचित है, आवश्यक नहीं कि वे पश्चिमी जगत में भी मान्य किये जायें, वहां की परिस्थितियों के अनुसार नैतिक सिद्धान्त भिन्न प्रकार के भी हो सकते हैं। नीति-व्यावहारिक जीवन से प्रमुखतया संबंधित होने के कारण नीति सिद्धान्तों में परिवर्तन आ जाता है। जैन नीति के सिद्धान्त यद्यपि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव द्वारा निश्चित कर दिये गये थे और वे दीर्घकाल तक चलते भी रहे थे; किन्तु उन सिद्धान्तों को युगानुरूप स्वरूप प्रदान करके भगवान महावीर ने निश्चित किया और यही सिद्धान्त अब तक प्रचलित हैं। इसी अपेक्षा से उन सिद्धान्तों को 'भगवान महावीर की नीति' नाम से अभिहित करना समीचीन है।
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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