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भगवान महावीर की नीति - अवधारणाएँ / 45
भगवान महावीर
भगवान महावीर का जन्म चैत्र शुक्ला, त्रयोदशी के दिन क्षत्रियकुण्ड ग्राम में राजा सिद्धार्थ की रानी त्रिशलादेवी की कुक्षि से ईसा पूर्व 599 में हुआ था । आपने 30 वर्ष गृहवास मे बिताये, तदुपरान्त श्रमण बने, साढ़े बारह वर्ष तक कठोर तपस्या की, केवलज्ञान प्राप्त किया और फिर धर्मतीर्थ का प्रवर्तन किया । 30 वर्ष तक अपने वचनामृत से जगत जीवों के लिए कल्याण-मार्ग बताया और आयु समाप्ति पर 72 वर्ष की अवस्था में कार्तिकी अमावस्या, दीपावली के दिन निर्वाण प्राप्त किया ।
आप जैन परम्परा के चौबीसवें और अन्तिम तीर्थंकर हैं । वर्तमान समय में उन्हीं का धर्मशासन चल रहा है।
भारतीय और भारतेतर सभी धर्म-प्रवर्तकों, उपदेशकों से भगवान महावीर का उपदेश विशिष्ट रहा है । उपदेश की विशिष्टता के कारण ही उनके द्वारा निर्धारित नीति में भी ऐसी विरल विशेषताओं का समावेश हो गया जो अन्यत्र उपलब्ध नहीं हो सकतीं। इस अपेक्षा से भगवान महावीर की नीति अवधारणा को दो शीर्षकों में विभाजित किया जा सकता है
1. भगवान महावीर की विशिष्ट नीति - अवधारणा 2. भगवान महावीर की सामान्य नीति - अवधारणा
सामान्य नीति से अभिप्राय नीति के उन सिद्धान्तों से है, जिनके ऊपर अन्य दार्शनिकों, मनीषियों और धर्म सम्प्रदाय के उपदेष्टाओं ने भी अपने विचार प्रगट किये हैं । ऐसे नीति सिद्धान्त सत्य, अहिंसा आदि हैं । किन्तु इन सिद्धान्तों का युक्तियुक्त तर्कसंगत सूक्ष्म विवेचन जैन परम्परा में प्राप्त होता है । भगवान महावीर और उनके अनुयायियों ने इन पर गम्भीर चिन्तन किया है।
विशिष्ट नीति से अभिप्राय उन नीति सिद्धान्तों से है, जहां कि अन्य मनीषियों की दृष्टि नहीं पहुंची है । ऐसे नीति सिद्धान्त अनाग्रह, अनेकांत, यतना, समता, अप्रमाद आदि हैं । यद्यपि यह सभी नीति सिद्धान्त सामाजिक सुव्यवस्था तथा व्यक्तिगत व्यावहारिक सुखी जीवन के लिए उपयोगी हैं फिर भी यह अछूते रह गये । भगवान महावीर और उनके आज्ञानुगामी श्रमणों, मनीषियों ने नीति के इन प्रत्ययों पर गम्भीर विचार किया है और सुखी जीवन के लिए इनकी उपयोगिता प्रतिपादित की है ।