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नीतिशास्त्र का उद्गम एवं विकास / 37
1. जो दुश्मन है, उसे दोस्त बनाना, 2. जो दुष्ट है, उसे सदाचारी बनाना, 3. जो अशिक्षित है, उसे शिक्षित बनाना। दैनिक व्यवहार को नीतिपूर्वक चलाने के लिए कहा गया है--1 * किसी की निन्दा मत करो। * मन में लोभ-लालच का भाव मत रखो। * किसी पर क्रोध मत करो। * किसी प्रकार की चिन्ता न रखो। * भोग-विलास में मत डूबो। * दूसरों से डाह (जलन) मत रखो। * आलसीपन की आदत मत डालो। * उद्यमी बनो। * दूसरों की सम्पत्ति मत ऐंठो, न हड़पो। * दूसरों की स्त्रियों से दूर रहो। * मन में किसी से बदला लेने की भावना मत रखो। क्योंकि वह सभी बातें मैत्रीभाव और उद्यमशीलता में बाधक हैं।
इसके अतिरिक्त पशुओं के प्रति दया, पाप के प्रति पश्चाताप, सत्य और मृदुभाषा का प्रयोग आदि नीति सम्बन्धी बातें तो हैं हीं।
इस्लाम धर्म की नीति
इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हजरत मुहम्मद साहब का जन्म अरब के प्रसिद्ध शहर मक्का में ईस्वी सन् 570 के लगभग हुआ। आपके विचारों का संकलन 'कुरान शरीफ' नामक ग्रन्थ में हुआ है। मुसलमान इस पुस्तक को पवित्र मानते हैं और बहुत आदर देते हैं।
सामान्यतः यह समझा जाता है कि इस्लाम में नीति का अंश नहीं है और यदि है भी तो बहुत कम है; किन्तु यह धारणा सत्य नहीं है। इस्लाम में नीति के ऐसे वाक्य मिलते हैं, जो दैनंदिन व्यवहार में बहुत उपयोगी हैं, उनके आचरण से जीवन सुखी हो सकता है।
1. दीनाईं मैनोकी खिरत, 20/3-7, उद्धृत-पारसी धर्म क्या कहता है? पृष्ठ 52