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नीतिशास्त्र का उद्गम एवं विकास / 35
लाओत्से एक गम्भीर तत्वचिन्तक और विचारक है। उसके विचारों का संकलन ताओ उपनिषद् नाम के ग्रन्थ में हुआ है।
लाओत्से ने ईश्वर का नाम 'ताओ' दिया है और उसे सर्वव्यापी तथा । प्रेममय बताया है। ‘ताओ तेह किंग' लाओत्से की अमर रचना है। 'तेह' उस ताओ को प्राप्त करने का उपाय है। इसी पर लाओत्से की सम्पूर्ण नीति आधारित है; दूसरे शब्दों में 'तेह' उसकी सम्पूर्ण नीति की आधारशिला है।
लाओत्से की नीति के प्रमुख तत्व हैं(1) आसक्ति का त्याग करके काम करना। (2) आघात के बदले दया करना, (3) छोटे में बड़ा देखना। सुखी रहने की नीति के विषय में लाओत्से कहता हैआप मुंह बन्द करें, आंखें और कान भी बन्द करें, जन्म-भर आपको कोई उपद्रव न होगा।
किन्तु यदि आप मुंह खोलेंगे, चालाकी दिखायेंगे तो जन्मभर दुखी रहेंगे। ___ भारत में जो, गांधीजी के तीन बन्दर प्रसिद्ध हैं, जिनमें से एक आंखें बन्द किये हुए है, दूसरा कान और तीसरा मुंह; वह लाओत्से के इसी सिद्धान्त पर आधारित है। लाओत्से ने ही तीन बन्दरों की मूर्ति सर्वप्रथम बनायी थी और 'बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो, की नीति सुखी जीवन के लिए निर्धारित की थी।
खुशामद भरे शब्दों पर अविश्वास करने की नीति के विषय में बताते हुए लाओत्से कहता है
तड़पन-भरे शब्द लच्छेदार नहीं होते।
लच्छेदार शब्द विश्वासयोग्य नहीं होते॥' लाओत्से व्यक्ति के स्वयं अपने सुधार की नीति में विश्वास करता है। वह दबाव अथवा दण्ड से सुधार की नीति को गलत मानता है। उसका मानना 1. ताओ उपनिषद्, 63। तुलना करिए-कर्मण्येवाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचन। -गीता 2. ताओ उपनिषद्, 53 3. ताओ उपनिषद्, 81 4. वही, 58