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34 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
धरा नानीहमानस्स धरा नाभणतो मुसा।
धरा नादिन्न दण्डस्स परेसं अनिकुव्वतो ॥' -(नित्य परिश्रम न करने वाले की गृहस्थी नहीं चलती। झूठ न बोलने वाले की गृहस्थी नहीं चलती। दण्डत्यागी की गृहस्थी नहीं चलती। दूसरों को न ठगते हुए की गृहस्थी नहीं चलती।)
यद्यपि इस गाथा को अनैतिक ही कहा जायेगा; किन्तु क्या आधुनिक युग में (और विस्तृत दृष्टिकोण से प्रत्येक युग में) सामान्य गृहस्थ के व्यावहारिक जीवन में यह परिस्थितियाँ घटित नहीं होती? क्या उसे यह सब कुछ, न चाहते हुए भी, व्यवहार में करने को बाध्य नहीं होना पड़ता? ।
भदन्त आनन्द कौशल्यायन के अनुसार 'लोकनीति' नाम का पालि ग्रन्थ लंका में है। उसमें व्यवहार नीति का ही वर्णन है।
इस प्रकार पालि साहित्य में नीति के लगभग सभी रूप प्राप्त होते हैं। इस दृष्टि से पालि साहित्य अच्छा समृद्ध है। II. एशिया की अन्य नीतिधाराएँ
अब तक की पंक्तियों में हमने उन नीतिधाराओं का संक्षिप्त परिचय दिया, जो भारतभूमि में ही उत्पन्न हुईं और यहीं विकसित हुईं। किन्तु अब उन नीति-धाराओं का परिचय दे रहे हैं जिनका उत्पत्ति स्थल एशिया महाद्वीप है।
ये धाराएँ हैं-चीन देश की, फारस की, महात्मा ईसामसीह की और हजरत मुहम्मद साहब की तथा यूनानी विचारकों प्लेटो, अरस्तू आदि की।
यद्यपि यूनान भी एशिया महाद्वीप में है और ईसामसीह की जन्मस्थली भी एशिया महाद्वीप ही है, किन्तु यूनानी विचारकों का सर्वाधिक प्रभाव पश्चिमी देशों पर हुआ, भारत और भारतीय नीति पर इनका प्रभाव नगण्य-सा रहा। ईसामसीह की नीति का प्रभाव अंग्रेजों के भारत पर शासन के कारण यूनानी विचारकों की नीति सम्बन्धी विचारधाराओं की अपेक्षा कुछ अधिक रहा। ताओ की नीति-परम्परा
ताओ एक विचारधारा है। इसका प्रचारक लाओत्से है जो चीन देश में ईसापूर्व छठी शताब्दी में पैदा हुआ।
1. जातक 2, पृष्ठ 419