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नीतिशास्त्र का उद्गम एवं विकास / 33
सेय्यो अमित्तो मेधावी यञ्चे नु कंपको । पस्स रोहिणिकं जम्मि मातरं हन्त्वा सोचती ॥'
- (मूर्ख दयालु मित्र की अपेक्षा बुद्धिमान शत्रु अच्छा है । मूर्ख रोहिणी को देखो, माता को मारकर अब दुःखी होती है ।)
इस नीति की पृष्ठभूमि में कथा यह है - रोहिणी की माँ एक बार सो रही थी, उसे मक्खियाँ परेशान करने लगीं। मां ने रोहिणी को मक्खी उड़ाने को कहा तो उसने मूसल इतनी जोर से मारा कि मां के प्राण-पखेरू ही उड़ गये । रोहिणी रोने लगी ।
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'नादान दोस्त से दाना (समझदार) दुश्मन अच्छा' जैसी फारसी की और better to have a wise foe than a foolish friend जैसी अंग्रेजी की सूक्ति और लोकोक्तियों में इसकी छाया स्पष्ट है ।
सिगाल जातक की गाथा पर्याप्त सोच-विचार कर कार्य करने के सम्बन्ध में द्रष्टव्य है
असमोक्खित कम्मत्तं तुरताभिनिपातिनं । तानि कम्मानि पप्पेन्ति उन्हं वज्जोहितं मुखे ॥ 2
- ( जो मनुष्य बिना विचारे जल्दबाजी में काम करता है, उसके वे काम ही उसे तपाते हैं; जैसे मुंह में डाला गर्म भोजन । )
कटुवाणी बोलने के बारे में सुजाता जातक में कहा गया हैवण्णेन सम्पन्ना, मञ्जुका पियदस्सना । खरवाचाविया होंति, अस्सिं लोके परम्हि च ॥
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- (सुन्दर वर्णवाला, देखने में प्रिय और कोमल होने पर भी कड़वी वाणी (रूखी वाणी ) बोलने वाला न इस लोक में प्रिय होता है और न परलोक में ।)
यद्यपि अधिकांश जातक कथाएं धर्म की दृष्टि से लिखी गई हैं; किन्तु व्यावहारिकता प्रधान होने के कारण कुछ ऐसी बातें भी आ गई हैं, जिन्हें अनैतिक ही कहा जायेगा। वच्छनव जातक में गृहस्थ के व्यवहार के लिए कहा गया है
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1. जातक 1 (रोहिणी जातक), पृ. 323-25
2. जातक 1, पृष्ठ 247
तुलना करिए - बिना विचारे जो करे, सो पीछे पछताय ।
काम बिगारे आपुनो, जग में होत हसाय ।।
3. जातक 3, पृष्ठ 76