________________
32 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
यो बालो मञ्जती बाल्यं पण्डितो वापि तेन से।
बालो च पण्डितमानी स वे बालो ति वुच्चति ॥' - (यदि मूर्ख अपने को मूर्ख समझे तो उतने अंश में तो वह बुद्धिमान है, असली मूर्ख तो वह है जो मूर्ख होते हुए भी अपने को बुद्धिमान समझता है।) मूर्ख के विषय में कितनी गहरी बात कही गई है।
अयसाव मलं समुट्ठितं तदुट्ठाय तमेव खादति।
एवं अति घोन चारिनं सकम्मानि नयन्ति दुग्गति ॥ -(जिस प्रकार लोहे से उत्पन्न मोर्चा (जंग) उस लोहे को ही खा जाती है, उसी प्रकार अतिचंचल मनुष्य की चंचलता उसकी दुर्गति (दुर्दशा) कर देती है-(दुर्गति को ले जाती है)।)
अभिप्राय यह है कि मन, वाणी और शरीर-तीनों की चंचलता हानिकारक है, दुर्गति का कारण है।
धम्मपद की अधिकांश नीतियां व्यावहारिक हैं। किन्तु एक स्थान पर आत्मपरक नीति भी मिलती है
अतदत्थं परत्थेत बहुनापि न हायवे। ___ अत्तदत्थमभिज्ञाय सदत्थपसु तो सिवा ॥ - (परोपकार के लिए आत्मार्थ को बहुत न छोड़े। आत्मार्थ को जानकर सदर्थ में लगे।) ____ जातक, बोधिसत्वों, तथागत बुद्ध के पूर्वजन्मों की कथाओं के संकलन हैं। 547 जातक मिलते हैं। यद्यपि बौद्ध परम्परा इन कथाओं को तथागत बुद्ध के पूर्वजन्मों से सम्बन्धित मानती है, किन्तु विद्वानों का विचार है कि मूलतः यह कथाएँ लोक-कथाएँ हैं जिन्हें बौद्धधर्म और उसके उपदेशों के अनुसार स्वरूप प्रदान कर दिया है।'
लेकिन संस्कृत के कथा साहित्य पर और महाभारत तथा पंचतन्त्र पर तो इनका प्रभाव बहुत ही स्पष्ट है।
जातकों की शैली यह है कि किसी भी नीति या उपदेश के लिए एक कथा ली गई है और उस कथा के बीच में या अन्त में नीतिपरक गाथा दे दी गई है। उस गाथा में नीति का उपदेश दे दिया गया है। कुछ उदाहरण यहां दिये जा रहे हैं।
रोहिणी जातक की यह गाथा देखिए1. धम्मपद, 63
2. धम्मपद, 240 3. डा. भोलानाथ तिवारी : हिन्दी नीति काव्य, पृ. 44
4. वही, पृष्ठ 44