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नीतिशास्त्र का उद्गम एवं विकास / 31
इनके अतिरिक्त कुछ ऐसे भी ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं, जिनमें नीति की शिक्षा अप्रत्यक्ष रूप से दी गई है। इन्हें अन्योक्ति कहा गया है। वीरेश्वर, विजयगणि, नीलकण्ठ, जगन्नाथ आदि के अन्योक्ति शतक इस दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। अन्योक्ति शतकों की संख्या भी काफी अधिक है।
इनमें कला, आम, कटहल आदि वृक्षों, चातक, मोर, बाज आदि पक्षियों; सिंह, गीदड़, मृग आदि पशुओं, पृथ्वी, बादल, सूर्य आदि प्राकृतिक वस्तुओं तथा झिल्ली आदि कीट-पतंगों को सम्बोधित करके नीति की बातें कही गई हैं जो विभिन्न रुचि, प्रवृत्ति और श्रेणी के पुरुषों पर घटित होती है।
इनके अतिरिक्त कुछ अन्य ग्रन्थ भी नीति सम्बन्धित हैं जिनकी रचना मुक्तक शैली में हुई है। इन्हें सुभाषित ग्रन्थ कहा जाता है। संस्कृत के प्रमुख सुभाषित ग्रन्थ हैं--कवीन्द्र वचन समुच्चय, सुभाषित कौस्तुभ, सुभाषित त्रिशती, सुभाषित रत्नाकर, सुभाषित रत्न भांडागार, सदुक्ति कर्णामृत (श्रीधर दास), सुभाषितावली (वल्लभदेव), सुभाषित रत्न सन्दोह (अमित गति) आदि। ___ इस प्रकार वेदों से प्रारम्भ होकर, ब्राह्मण, स्मृति, महाकाव्य, पुराण, नीतिसम्बन्धी ग्रन्थ, अन्योक्ति, सुभाषितों से होती हुई संस्कृत भाषा में रचित वैदिक नीति की धारा प्रवाहित होती हुई पयस्विनी के समान गतिशील रही।
यद्यपि इन ग्रन्थों पर और इनमें वर्णित नीति पर जैन और बौद्ध परम्पराओं का काफी प्रभाव दृष्टिगोचर होता है, फिर भी विद्वानों ने इसे वैदिक नीति स्वीकार किया है, इसका प्रमुख कारण यह है कि अधिकांश ग्रन्थ और ग्रन्थकार रूप से वैदिक परम्परा से सम्बन्धित रहे हैं।
बौद्ध परम्परा की नीति
बौद्ध परम्परा का प्रारम्भ तथागत गौतम बुद्ध से हुआ, जो ईसापूर्व की छठी शताब्दी में भारत-भूमि पर विचरण कर रहे थे। बोधि प्राप्त होने पर तथागत बुद्ध ने अपना धर्मोपदेश पालि भाषा में दिया। इसीलिए पालि बौद्धधर्म की प्रमुख भाषा हो गयी और बौद्धधर्म का प्रारम्भिक साहित्य पालि-साहित्य के रूप में प्रसिद्ध हुआ। ___ बौद्ध साहित्य के पिटक और जातक-दो प्रमुख भेद किये जा सकते हैं। जातकों में प्रमुख रूप से कहानियां हैं, बोधिसत्वों से सम्बन्धित आख्यायिकाएँ हैं, उनमें कथाओं के माध्यम से नीति-शिक्षा दी गई है।
पिटक साहित्य में नीति की दृष्टि से धम्मपद महत्वपूर्ण है। उसमें से कुछ उदाहरण यहां दिये जा रहे हैं