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26 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
इस श्लोक में दंभी और ढोंगी चरित्र वाले, तन के उजले मन के काले, धर्म का आडम्बर ओढ़े हुए पाखंडियों के वास्तविक चरित्र की ओर व्यंग भी किया गया है तथा उनसे सावधान रहने की सामान्य नीति का भी निर्देश है।
इसी प्रकार के अनेक नीति श्लोक और सूक्तियां वाल्मीकि रामायण में प्राप्त होते हैं।
नीति की दृष्टि से महाभारत अत्यन्त समृद्ध महाकाव्य है। धौम्यनीति, विदुरनीति, भीष्मनीति आदि ग्रन्थ महाभारत के ही अंश है। यहाँ तक कि श्रीमद्भगवद्गीता भी इसी का एक अंश है। इस महाकाव्य में नीति के फुटकर श्लोक, उपाख्यान आदि भरे पड़े हैं।
इस दृष्टि से वनपर्व, उद्योगपर्व, भीष्मपर्व, स्त्रीपर्व, शान्तिपर्व, अनुशासन पर्व आदि पठनीय है।
वन पर्व में अहिंसा, भाग्य, धर्म, स्त्री तथा सामान्य नीति विषयक बातें हैं। उद्योग पर्व में नैतिकता, धर्म तथा सांसारिक ज्ञान की सुन्दर नीतियाँ विदुर ने कही हैं। इसी प्रकार स्त्रीपर्व में विदुर ने स्त्री-चरित्र के सम्बन्ध में नीतियुक्त वर्णन किया है। भीष्म पर्व के अन्तर्गत गीता है। शान्ति पर्व राजनीति की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। अनुशासन पर्व में स्मृतियों के समान विभिन्न विषयों के बारे में विधि निषेध प्राप्त होता है।
संक्षेप में यह ग्रन्थ (महाभारत) राजनीति, धर्मनीति, सामान्यनीति लोकव्यवहार नीति आदि से बहुत समृद्ध है। एक-दो उदारहण काफी होंगे
यूयं शतः वयं पंच, यूयं यूयं वयं वयं।
किंत्वन्येषां विवादेषु, यूयं पंचशतोत्तरं ॥' ___-(युधिष्ठिर दुर्योधन को समझाते हुए कहते हैं-भाई! घर में तो तुम सौ भाई हो और हम पाँच, तुम तुम हो और हम हम हैं। किन्तु दूसरों के साथ विवाद के अवसर पर तुम एक सौ पांच हो, हम सभी भाई एक हैं, सम्मिलित हैं।)
इस श्लोक में संगठन का महत्व स्पष्ट है।
संगठन का महत्व बताने वाली ऐसी ही वैदिक उक्ति भी है-संघौ शक्तिः कलौयुगे-कलियुग में संगठन ही शक्ति है।
धन के महत्व के विषय में महाभारत का यह श्लोक द्रष्टव्य है1. महाभारत, वनपर्व