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24 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
आदि विषयों पर धर्मसूत्रों में काफी विवेचन किया गया है और ऐसे सिद्धान्त किये गये हैं जो नीति से सम्बन्धित हैं। __स्मृति साहित्य नीति की दृष्टि से बहुत उपयोगी है। इनमें आचार, व्यवहार (विधि अथवा कानून) और प्रायश्चित्त का वर्णन है। यद्यपि स्मृतियों की संख्या 18 है किन्तु इनमें से 3 महत्वपूर्ण हैं-मनुस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति और नारदस्मृति। इनमें भी सर्वाधिक लोकप्रिय मनुस्मृति है। द्वितीय स्थान याज्ञवल्क्य स्मृति का है।
स्मृतियों में चारों वर्गों के कर्त्तव्य, पारस्परिक व्यवहार का वर्णन है। साथ ही नीति और राजनीति के विषय में सुन्दर सूक्तियाँ भी हैं।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैस्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रिया ॥ (जिस कुल में स्त्रियों का पूजन (आदर-सम्मान-सत्कार) होता है, वहाँ देवताओं का निवास रहता है (देवता प्रसन्न रहते हैं) और जिस कुल में नारियों का सम्मान नहीं होता, वहां सभी कर्म निष्फल होते हैं।)
मनुस्मृति का यह श्लोक समाज में नारी की गरिमा प्रकट करता है। यह उच्च चरित्रवान नारी के लिए कहा गया है।
राजा के चरित्र का मार्मिक मार्गदर्शन देने वाला एक श्लोक यहां उद्धृत करने योग्य है
___ वकवच्चिन्तयेदर्थान् सिंहवच्च पराक्रमेत् ।
वृकवच्चावलुम्प्येत शशवच्च विनिष्पतेत् ॥ (राजा का कर्त्तव्य है कि बगुले के समान शत्रु का धन लेने की चिन्ता करे, सिंह के समान पराक्रमी बने, भेड़िये के समान अवसर देखकर शत्रु को मारे और (विपरीत) अवसर होने पर खरगोश की तरह चुपचाप (छिपकर) निकल जाय।)
प्रस्तुत श्लोक में राजा के कर्तव्यों के रूप में राजनीति-कूटनीति की कार्यकारी और प्रभावी चतुराई का वर्णन हुआ है। महाकाव्य साहित्य में नीति
महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण सबसे प्राचीन महाकाव्य है। इसकी कथा मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से सम्बन्धित है। अतः इसमें आदर्श पत्नी, आदर्श भाई, 1. मनुस्मृति, 3 156 2. मनुस्मृति, 7 1106