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नीतिशास्त्र का उद्गम एवं विकास / 23
केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, मांडूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक तथा नृसिंह पूर्वतापनी यह 11 उपनिषद् प्रमुख हैं।
ईशावास्य उपनिषद् में दूसरे के धन की इच्छा न करने' का उपदेश दिया गया है। तैत्तिरीय उपनिषद् में शिक्षा समाप्त करके गुरुगृह से जाने वाले शिष्य को मात-पिता तथा गुरु- सेवा में आलस्य न करने, स्वाध्याय एवं सत्य बोलने की प्रेरणा दी गई है।
इस प्रकार उपनिषदों में भी नीति सम्बन्धी अनेक महत्वपूर्ण निर्देश सूत्र प्राप्त होते हैं।
वेदांग छह हैं - शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष । इनमें से नीति के दृष्टिकोण से ‘कल्प' का ही महत्व है। कल्प के दो भेद हैं- श्रौतसूत्र और स्मार्तसूत्र । श्रौत सूत्र में यज्ञ-याग आदि का वर्णन है । अतः नीति की दृष्टि से उनका कोई महत्व नहीं है ।
स्मार्त सूत्र के दो भेद हैं-गृह्यसूत्र और धर्मसूत्र । इनमें मानव के आचार का वर्णन होने से नीति की दृष्टि से इनका सर्वाधिक महत्व है। इनमें विविध संस्कारों, रीति-रिवाजों आदि का भी वर्णन है।
धर्मसूत्र सम्बन्धी कई ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं । इनमें से बौधायन धर्मसूत्र, आपस्तम्ब धर्मसूत्र और गौतम धर्मसूत्र प्रमुख हैं ।
इनमें विवाह के भेद, विवाह की नीति, ब्रह्मचारी, संन्यासी, ब्राह्मण, प्रभृति के कर्तव्य आदि बताये गये हैं। झूठी गवाही देने वाले को दण्ड तथा अन्य प्रकार के पापकर्मियों के लिए भी दण्ड का विधान है। वाणी संयम आदि सद्व्यवहारों का भी उपदेश दिया गया है
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विवाह के सम्बन्ध में स्वगोत्र की कन्या से विवाह का निषेध, अतिथि सत्कार", उपार्जित धन का व्यय (दान) 7, कर-विधान', पर- स्त्री गमन', दण्ड
1. ईश., 1-मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ।
2. तैत्तिरीय, 1 12 11-सत्यं वद धर्म चर, स्वाध्यायान् मा प्रमद इत्यादि ।
3. गौतम धर्मसूत्र, 214123. 4. गौतम धर्मसूत्र, 11713
5. आपस्तम्ब धर्मसूत्र, 1115
6. आपस्तम्ब धर्मसूत्र, 21316114-15 3 1713, 5, 7, 8, 10, 16
7. आपस्तम्ब धर्मसूत्र, 8 120118, 20
8. आपस्तम्ब धर्मसूत्र, 100 126111-14 9. आपस्तम्ब धर्मसूत्र, 10 127 17,8,14,15