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22 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
ब्राह्मण ग्रन्थों की नीति
वेदों के बाद वैदिक परम्परा के प्राचीन ग्रन्थ ब्राह्मण माने जाते हैं । यद्यपि ब्राह्मणों का मूल स्वर यज्ञ और क्रियाकांड है फिर भी उनमें नीति सम्बन्धी कुछ वाक्य मिल जाते हैं।
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शतपथ आदि ब्राह्मणों में सत्य, तप, दया, दान, दमन' पुरुषार्थ', साफ-सुथरा रहने की प्रेरणा, भोजन का महत्व' उचित भोजन आदि सम्बन्धी अनेक सूत्र उपलब्ध होते हैं ।
ब्राह्मण ग्रन्थों में वर्ण व्यवस्था', गृहस्थ धर्म, स्त्रियों के कर्त्तव्य' पुत्र का महत्त्व ", पुत्र का कर्त्तव्य", तीन ऋण", चार ऋण, विद्या का महत्व ", आदि का वर्णन उपलब्ध होता है ।
उपनिषदों - का प्रधान विषय अध्यात्म है । इन ग्रन्थों में आत्मा-परमात्मा सम्बन्धी जिज्ञासाएँ और समाधान वर्णित हैं । ब्रह्म का स्वरूप, मनुष्य का परम कर्त्तव्य", ज्ञानी का जीवन 7, कर्मों के फलनानुसार लोक - लोकान्तर में गति ", धर्म के तीन स्कन्ध आदि विषयों का वर्णन किया गया है।
उपनिषद् वेदों के अन्तिम भाग हैं। इनकी संख्या 200 से ऊपर बताई जाती है; किन्तु इनमें से 108 उपनिषद् प्रधान माने गए हैं और इनमें भी ईश,
1. शतपथ ब्राह्मण, 111 11 14-5; 1 13 14 127 ; 14 14 12 126
2. शतपथ ब्राह्मण, 314 14127 3. शतपथ ब्राह्मण, 14181212-3-4
4. ऐतरेय ब्राह्मण, 3313
5. तैत्तरीय ब्राह्मण, 1-266. शतपथ ब्राह्मण, 10 12 16 117; 7 15 112 116 7. शतपथ ब्राह्मण, 4 12 12 114; 14 14 12 127, 14 14 14 16;4 11 15 16 आदि 8. शतपथ ब्राह्मण, 5 12 11 110, 12 18 12 16, 3 13 11 110, 4 11 15 17 आदि
9. शतपथ ब्राह्मण, 3 18 12 15, 1 12 13 16, 11 14 1312 आदि
10. ऐतरेय ब्राह्मण, 33 11
11. शतपथ, 144 13 126; 12 12 13 14 आदि
12. तै. सं., 6 12 110
13. शतपथ, 1171211, 3 14 15
14. शतपथ, 10 15 14 116
15. त. 311, केन. 414 15, कठ. 2 15 115 आदि
16. बृहदराण्यक, 4 15 16 छान्दोग्य, 7 123 11, कठ, 2 15 112, 13, मुण्डक, 2 12 18
17. ईश., 112, कठ 2 16 114; मुण्डक, 2 12 18, छान्दोग्य, 7 152 12, बृहदारण्यक, 31511
8. 9), 375, वृहदारण्यक, 4)45
19. छान्दोग्य, 2 123 11