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________________ समय सरल साथी साधु सुख-दुख परिशिष्ट : हिन्दी साहित्य की सूक्तियाँ / 485 दुख सुख धन जीवन मरन पैये बार कठोर । बीत गयो जो फिर कबौ समय न मिलत बहोर । । तृषार बिनु जो तन त्यागा । ये करै का सुधा तड़ागा । । का बरषा जब कृषी सुखाने । समय चूक पुनि का पछताने । । - ब्रज सतसई, 89 - रामचरितमानस, 1/ 261 अति ही सरल न हूजिए देखो जो वनराय । सीधे साधे छेदिये, बांको तरु बच जाय । । साधु वही जो काया साधे । सब कछु छांड़ि ईस आराधे । तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक । साहस सुकृत सत्यव्रत रामभरोसो एक ।। तुलसी असमय के सखा साहस धर्म विचार । सुकृत सील स्वभाव ऋजु रामसरन आधार ।। - वृन्द - तुलसी सतसई, 7/46, 47 सुख बीते दुख होत है, दुःख बीते सुख होत । दिवस गये ज्यों निस उदित, निस गत दिवस उदोत । - नीति छन्द. - वृन्द सतसई, 110
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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