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________________ 484 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन सबै सुखन को सोत, सतत निरोग शरीर है। जगत जलधि को पोत, परमारथ पथ रथ यहै।। -दुलारे दो., 35 शत्रु सांई वैर न कीजिए गुरु पंडित कवि यार। बेटा बनिता पंवरिया यज्ञ करावनहार ।। यज्ञ करावनहार राजमंत्री जो होई। विप्र पड़ौसी वैद्य आपकी तपै रसोई।। कह गिरिधर कविराय जुगन तैं यह चलि आई। इन तेरह सौ तरह दिये बनि आवै भाई।। -गिरिधर : कुण्डलिया, पृ. 16 इसका आधुनिक रूप है सांई वैर न कीजिए गरु, नेता कवि यार। बेटा संपादक घरनि औ जो खिदमतगार।। औ जो खिदमतगार राज्य अधिकारी होई। भाई पड़ौसी वैद्य आपकी तपै रसोई।। कह गिरिधर कविराय, जुगन ते यह चलि आई। इन तेरह सौ तरह दिये बनि आवै आई।। -नीति छन्द शील भूषन रतन अनेक जग, पै न सील सम कोय। सील जासु नैनन बसत, सो जग भूषन होय।। -रत्नावली दोहा., पृ. 144 सत्य वचन आपनो सत्य करि, रतन न अनिरत भाषि। अनृत भाषिवौ पाप पुनि, उठति लोक सौं साषि।। -रत्नावली दोहावली, 169
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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