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परिशिष्ट : हिन्दी साहित्य की सूक्तियाँ / 479
बुद्धिहीन
विधि निषेध नहीं जानही, कुवचन गरब विरोध। अपकारी क्रोधी निलज, लच्छन आठ अबोध ।।
-ब्रज सतसई, 47
बोलो
रतनावलि कांटो लग्यौ बैदनु दियो निकारि। वचन लगौ निकस्यौ न कहुं उन डारो हिय फारि।।
-रत्नावली दोहा., 36 जो लायक जिहि बात को तासौं तैसी होय। सज्जन सौं न बुरी करै दुर्जन भली न कोय।।
-वृन्द सतसई, 109 बात कहन की रीति में, है अन्तर अधिकाय। एक वचन तें रिस बढ़े, एक वचन ते जाय।।
-वृन्द सतसई, 326
भाई
भाई सौ नहि मीत, जो अपने अनुकूल हो। भाई सगै नहिं तीत, जो प्रतिकूल चलन लगे।।
-नीति छन्द
भाग्य
लोहा चमकै घिसै से, लकड़ी रगड़े आग। सोना चमकै ताप से, श्रम से चमकै भाग।।
-नीति के दोहे रतन दैव अमृत तिष, विष अमृत बन जात। सूधी हू उलटी परै, उलटी सूधी बात।।
-रत्नावली दो., 114