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________________ नम्रता नारी निर्बल पावत जाते मनुज हैं भूत प्रेत' को पंथ | कहत धर्म ताको विबुध निरखि सकल सदग्रन्थ । । परिशिष्ट : हिन्दी साहित्य की सूक्तियाँ / 477 रतनावलि धरमहिं रखत, ताहि रखावत धर्म । धरमहि पातति सो पतति, जेहि धर्म को मर्म ।। नर की अरु नल नीर की, गति एकै करि जोय । जेतो नीचो है चले तेतो ऊँचो होय - बिहारी सतसई, पृ. 642 नारी की निन्दा करो नारी ही से होत हैं, नारी है सद्रत्न वीरांगना है उसे - सदाचार सोपान, 119-120 नारी निन्दा मत करो, नारि स्वर्ग की खानि । नारी ही ते होत हैं, ध्रुव प्रहलाद समान ।। 1. स्वर्ग आदि उच्च योनि में जन्म - रत्नावली दोहावली, 80 नारि नसावे तीनि सुख, जा नर भगति मुकति निज ग्यान में, पैसि न नारि नरक की खान । रावण कंस समान ।। देखिए । ध्यान से शक्तिमय लेखिए ।। पारौं होइ । कोय ।। सकई - सरस्वती, भाग 18, संख्या 6 कहैं इहै सब स्रुति स्मृति इहै सयाने तीन दबावत निसक ही, पातक राजा - अज्ञात कवि - अज्ञात कवि - कबीर ग्रन्थ., पृ. 40 लोग । रोग । । - बिहारी सतसई, 634
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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