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________________ 458 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन सफलता काले चरंतस्स उज्जमो सफलो भवति । ___-आचारांगनियुक्ति, 1/5/4 उचित समय पर काम करने वाले का श्रम सफल होता है। सम्यक्त्व मा कासि तं पमादं, सम्मत्ते सव्वदुक्ख णासयरे। -भगवती आराधना, 735 सम्यक्त्व सभी दुःखों का नाश करने वाला है, अतः इसके उपार्जन में प्रमादी मत बनो। सम्यग्दर्शन समत्तदंसी न करेइ पावं। -आचारांग 1/3/2 सम्यग्दर्शी कभी पाप किसी का अशुभ नहीं करता। सम्यग्दृष्टि हेयाहेयं च तहा, जा जाणइ सो हु सद्दिट्ठी -सूत्रपाहुड, 5 जो हेय और उपादेय (त्यागने और ग्रहण करने योग्य) को जानता है, वही सम्यग्दृष्टि (सत्य दृष्टि) है। सरलता सोही उज्जुअभूयस्स, धम्मो सुद्धस्य चिट्ठई। -उत्तराध्ययन, 3/13 जो ऋजु होता है, वही शुद्ध हो सकता है और शुद्ध हृदय में ही धर्म टिक सकता है। साधनहीन मानव उवगरणेहि विहूणो, जहवा पुरिसो न साइए कज्ज। -व्यवहारभाष्य पीठिका, 10/540
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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