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448 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
दुर्लभ
दाणं मग्गण-द्रव्यं, भांडं, लंचा, सुभासियं वयणं । जं सहसा न य गणियं, तं पच्छहा दुल्लहं होइ ।।
दान, मांगा हुआ द्रव्य, बर्तन, रिश्वत, सुभाषित वचन - यदि शीघ्र ग्रहण न किये जायें तो पीछे दुर्लभ हो जाते हैं।
दुष्कर
दाणं दरिद्दस्स पहुस्स खंती इच्छानिरोहो य सुहोइयस्स । तारुन्नए इन्दियनिग्गहो य चत्तारियाणि सुदुक्कराणि ।
- कामघट कथानक, 107
- गौतम कुलक, 19
चार बातें बहुत दुष्कर हैं
(1) निर्धन का दान देना, ( 2 ) प्रभु (अधिकार संपन्न ) का क्षमा करना (3) सुखी व्यक्ति का अपनी इच्छाओं को रोकना और (1) युवावस्था में इन्द्रियों का निग्रह करना, उन्हें विषयों में न जाने देना ।
दुष्ट आचार
जहा सुणी पूईकण्णी, निक्कसिज्जइ सव्वसो । एवं दुस्सील पडिणीए, मुहरी निक्कसिज्जइ । ।
- उत्तराध्ययन, 1/7
जिस प्रकार सड़े कानों वाली कुतिया जहां भी जाती है, सर्वत्र निकाल दी जाती है; उसी प्रकार दुःशील और वाचाल व्यक्ति भी सर्वत्र धक्के देकर निकाल दिया जाता है ।
देने का विवेक
जो जिसके योग्य हो, उसे वही देना चाहिए ।
जो जस्स उपाआग्गे, सो तस्स तहिं तु दायव्वो ।
- निशीथभाष्य, 5291