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440 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
भविष्य में तुम्हें कष्ट न भोगना पड़े, इसलिए अभी से अपने को अनुशासित करो।
सुवइ य अजगरभूतो, सुयंति ये णासती अमयभूयं । ... हाहिति गोणभूयो णट्ठमि सुये अमयभूये।।
-निशीथभाष्य, 5305 जो मानव अजगर के समान सोया रहता है, उसका अमृतस्वरूप ज्ञान क्षीण हो जाता है और अमृतस्वरूप ज्ञान के क्षीण होने पर व्यक्ति एक प्रकार से निरा बैल बन जाता है।
अवसोहिय कष्टगापहं, ओइण्णो सि पहं महालयं । गच्छसि मग्गविसोहिया। समयं गोयम! मा पमाइए।।
-उत्तराध्ययन, 10/12 काँटों से भरे संकीर्ण मार्ग को छोड़कर तू विशाल सत्पथ पर चला आया है। अब दृढ़ निश्चय के साथ इसी मार्ग पर चल । जीवन में क्षण मात्र भी प्रमाद मत कर!
कालेण कालं विहरेज्ज रठे। बलाबलं जाणिय अप्पणो य।
-उत्तराध्ययन, 21/14 अपने बलाबल को जानकर, समय के अनुसार राष्ट्र (राज्य) में विहरण करो।
से जाणमजाणं वा कटुं आहम्मियं पयं। संवरे खिप्पमप्पाणं, बीयं तं न समायरे।।
-दशवैकालिक, 8/31 जान या अजान में कोई अधर्म (अनैतिक) कार्य हो जाय तो अपनी आत्मा को उससे तुरन्त हटा लेना चाहिए और फिर दूसरी बार वह कार्य नहीं करना चाहिए।
मा मा मारेसु जोए मा परिहव सज्जणें करेसु दयें। मा होह कोवणा भो खलेसु मित्तिं च मा कुणह।।
-कुवलयमाला, अनुच्छेद 85 जीवों को मारो मत, उन पर दया करो, सज्जनों को अपमानित मत करो, क्रोधी मत बनो, दुष्टों से मित्रता मत करो।