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434 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
जिस प्रकार सभी नदियाँ सागर में मिलती हैं उसी प्रकार भगवती अहिंसा में सभी धर्मों का समावेश होता है। अहिंसा तस थावर सव्वभूय खेमंकरी।
-प्रश्नव्याकरण सूत्र, 2/1 अहिंसा सभी प्राणियों (चलते-फिरते और स्थिति प्राणी) का कुशल क्षेम करने वाली है। रागादीणमणुप्पाओ अहिंसकत्त।
-जयधवला, 1/42/94 ___ राग आदि की अनुत्पत्ति अहिंसा है और इनकी (रागादि की) उत्पत्ति हिंसा
असुभो जो परिणामो सा हिंसा।
-विशेषावश्यकभाष्य, 1766 जीव (प्राणियों) का अशुभ परिणाम (भाव) हिंसा है।
आचरण
सारो परूवणाए चरणं, तस्स वि य होइ निव्वाणं।
.. -आचारांगनियुक्ति, 17 प्ररूपणा (उपदेश) का सार आचरण है, जिससे निर्वाण (मुक्ति) होती है।
भणन्ता अकरेन्ता य, बन्धमोक्खो पइण्णिणो। वायाविरियमेत्तेण समासासेन्ति अप्पयं ।।
__ -उत्तराध्ययन, 6/9 जो केवल बोलते हैं, करते कुछ नहीं, वे बन्ध और मोक्ष की बातें करने वाले व्यक्ति केवल वाणी की वीरता से अपने आपको आश्वासन देने वाले हैं। आत्मदर्शन
जो जाणइ अप्पाणं, अप्पाणं सो सुहाणं न हु कामी। पत्तम्मि कप्परुक्खे, रुक्खै कि पत्थणा असणे।।
-आत्मावबोध कुलक, 4 जो अपनी आत्मा को जानता है, वह सांसारिक सुखों का इच्छुक नहीं होता। जिसे कल्पवृक्ष प्राप्त हो गया है, क्या वह अन्य वृक्षों की प्रार्थना करेगा? अर्थात् कभी नहीं करेगा।