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426 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
____ जो व्यक्ति किसी की बहुमूल्य वस्तु को अल्पमूल्य में नहीं लेता, दूसरे की गिरी हुई वस्तु उठाकर नहीं लेता और थोड़े से लाभ से संतुष्ट रहता है, तथा कोध, लोभ, माया तथा मान से दूसरे के द्रव्य का हरण नहीं करता वह शुद्ध विचार वाला दृढ़ निश्चयी अचौर्य अणुव्रती है।
वज्जिज्जा तेनाहड तक्कर जोगं विरुद्ध रज्जं च। कूडतुल-कूडमाणं तप्पडिरूवं च ववहारं ।।
-सावय पण्णत्ति, 268 चोरी का माल खरीदना, तस्करी करना, राजाज्ञा का उल्लंघन करना, नाप-तोल में गड़बड़ करना तथा मिलावट करना यह सब चोरी के समान वर्जनीय हैं। अद्वेष न विरुज्झेज्ज केणवि।
-सूत्रकृतांग, 1/11/12 किसी के भी साथ वैर-विरोध न करें। अनासक्ति असंसत्तं पलाइज्जा
-दशवैकालिक, 5/1/23 ललचाई दृष्टि से किसी भी वस्तु को नहीं देखें।
कामाणुगिद्धिप्पभवं खु दुक्खं, सव्वस्स लोगस्स स देवगस्स, जं काइयं माणिसियं च किंचि, तस्सन्तगं गच्छति वीयरागो।
-उत्तराध्ययन, 32/19 संसार के समस्त जीवों के, यहाँ तक कि देवों के भी जो कुछ शारीरिक और मानसिक दुःख हैं, वे सब कामासक्ति से ही उत्पन्न होते हैं। अनासक्त पुरुष ही उनका अन्त कर पाता है।
तण कठेहि व अग्गी, लवणजलो व नई सहस्सेहि। न इमो जीवो सक्को, तिप्पेउं कामभोगेउं।
-आतुर प्रत्याख्यान, 50