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अचौर्य
प्राकृत जैन साहित्य की सूक्तियाँ
भावि आई अदत्तं
मनुष्य लोभ से व्याकुल अथवा प्रेरित होकर चोरी करता है । अदत्तादाणं... अकित्तिकरणं ... अणज्जं ...सया साहुगरहणिज्जं
-उत्तराध्ययन, 32/29
- प्रश्नव्याकरण, सूत्र 1/3
चोरी अपयश करने वाला एक अनार्यकर्म है। यह सभी सज्जनों द्वारा सदा निन्दनीय है ।
परदव्व हरणमेदं आसवदारं खु वेंति सोगरिय-वाह-परदारयेहिं चोरो हु
पावस्स । पापदरो ।
-भगवती आराधना, 856/964
परद्रव्य हरण करना पाप का आगमन द्वार है। सूअर की हत्या करने वाले, आदि को पकड़ने वाले तथा परस्त्रीगमन करने वाले से भी चोर अधिक पातकी गिना जाता है ।
मृग
जो बहुमुल्लं व्यथुं अप्पयमुल्लेण णेव गिण्देहि । वीसरियपि ण गिण्हदि लाहे थोवे वि तूसेदि ॥ जो परदव्वं ण हणदि मायालोहेण कोहमाणेण । दिढचित्तो सुद्धमई अणुव्वई सो हवे
तिदिओ | - कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 335/336