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समस्याओं के समाधान में जैन नीति का योगदान / 417
बन गई है कि धार्मिक और नैतिक व्यक्ति सफल नहीं हो सकता, क्योंकि यह युग चतुराई और चालाकी का है। इस युग में चतुर, चालाक व्यक्ति ही सफल हो पाते हैं।
लेकिन यह धारणा निर्मूल है। जैन नीतिकारों ने पाँच समवाय बताये हैं। इनका सही उपयोग करने से प्रत्येक कार्य में सफलता प्राप्त हो सकती है। वे समवाय हैं
(1) काल-काल दार्शनिक और व्यावहारिक दोनों ही दृष्टियों से बहुत ही महत्वपूर्ण तत्व है। संसार के सभी कार्य काल के अनुसार चलते हैं। किसी भी कार्य की सफलता में इसका बहुत बड़ा हाथ रहता है।
यदि पाँच मिनट भी लेट हो गये तो ट्रेन मिस हो गई, आपकी योजना धरी की धरी रह गई। काल अथवा समय का ध्यान न रहने से उम्मीदवार इन्टरव्यू न दे सका, परिणामस्वरूप उसका सलैक्शन न हो सका, कैरियर बनते-बनते बिगड़ गया। सुखी जीवन की योजना खटाई में पड़ गई। असफल हो गया।
(2) स्वभाव-इसका अभिप्राय है वस्तु का अपना स्वरूप। नीतिशास्त्र में इसका अभिप्राय व्यक्ति का अपना चरित्र होता है और जैसा कि मैकेंजी ने कहा है-चरित्र आदतों का समूह होता है।
अतः स्वभाव से नीतिशास्त्र में आदत (habit) का प्रत्यय ग्रहण किया जाता है। आदत अथवा चरित्र का सफलता-असफलता में बहुत बड़ा भाग होता है। बुरी आदतों (bad habits) वाला व्यक्ति सर्वत्र बदनाम होता है और असफल हो जाता है जबकि अच्छी (good) आदतों वाला व्यक्ति लोकप्रिय, सुसंस्कृत के रूप में सर्वत्र सम्मान पाता है, सफलता उसके चरण चूमती है।
(3) नियति-इसका अभिप्राय भवितव्यता अथवा होनी है। इसे भाग्य (fate) भी कहा जाता है। सामान्य मान्यता है कि जो घटना जिस रूप में घटित होनी है उसी रूप में घटित होगी।
लेकिन जैन नीति के अनुसार सदाचरण द्वारा भाग्य को अनुकूल भी बनाया जा सकता है। वैसे सामान्य रूप से भाग्य की अनुकूलता भी सफलता में महत्वपूर्ण कारण हैं।
(4) पुरुषार्थ-इसे सामान्य भाषा में उद्यम कहा जा सकता है। जैन नीति इस समवाय पर अधिक बल देती है। इसके अनुसार पुरुषार्थ के अभाव में सफलता नहीं मिलती। सफलता प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ अनिवार्य है।