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अधिकार-कर्त्तव्य और अपराध एवं दण्ड / 395
न्यायालयों द्वारा निर्धारित दण्ड राज्य और समाज-दोनों ही की सुव्यवस्था के लिए अनिवार्य है। आर्थिक सुरक्षाके लिए भी दण्ड का प्रावधान है।
नीतिशास्त्र भी इसी परिप्रेक्ष्य में दण्ड को स्वीकृति देता है।
समाज के सन्दर्भ श्री वाल्टर रैकलैस ने दण्ड की परिभाषा इस प्रकार दी है
"दण्ड वह प्रतिशोध है जो कामनवेल्थ अपराधी से लेता है।"
इस परिभाषा में प्रतिशोध शब्द खटकने वाला है। यह तो एक प्रकार से बदला चुकाना हुआ जो कि नैतिक अथवा समझदार व्यक्ति के लिए उचित नहीं है। इससे तो न्याय अथवा न्यायाधीश की गरिमा भी नहीं रहती।
अतः यह परिभाषा नीतिशास्त्र को मान्य नहीं है।
इस परिभाषा से श्रेष्ठ परिभाषा सेठना की है। वह कहता है-“दण्ड एक प्रकार का सामाजिक नियन्त्रण है।"2
सामाजिक नियन्त्रण यदि नैतिकता के प्रसार के लिए है तो यह परिभाषा नीतिशास्त्र को मान्य हो सकती है।
जैन आचार्यों ने दण्ड शब्द पर कई दृष्टियों से चिन्तन किया है। दण्ड-छोटी लाठी को कहते हैं जो हाथ में रखी जाती है-यह अपराध आदि के नियन्त्रण, दुष्टों को भयभीत करने में प्रयुक्त होती है। इसी अर्थ में दण्ड शब्द का प्रयोग हुआ है। जिससे-दुष्टों का निग्रह, अनुशासन एवं अपराधी का उत्पीड़न किया जाय, वह है दण्ड। कहा है :
वधश्चैव परिक्लेशो धनस्य हरणं तथा। इति दण्ड विधानज्ञैर्दण्डोऽपि त्रिविधः स्मृतः... ।
मारना-पीटना, क्लेश पहुँचाना तथा धन आदि की अदायगी के रूप में अर्थभार डालना-यों तीन प्रकार दण्ड कहा है।
एक परिभाषा के अनुसार-“दण्डनं दण्डः अपराधीनाम-नुशासनम्।" -अपराधियों पर अनुशासन का नियंत्रण रखना दण्ड है।'
सेठना की उक्त परिभाषा भी इसी का अनुसरण करती है।
1. It is redress that the commonwealth takes against an offending member.
-Walter Reckless 2. Punishment is some sort of social censure.
-M.J. Sethna : Society and Criminals, p. 205 3. देखें अभिधान राजेन्द्र कोष, भाग 4, पृ. 2421 पर प्रसंगानुसार दण्ड के 11 अर्थ हैं।