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________________ 392 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन यह सुरुचि वस्त्र धारण करने, बोल-चाल के ढंग, भाषा, वाणी आदि के रूप में प्रदर्शित होती है। साथ ही नागरिक का कर्तव्य है कि पार्क उद्यान आदि सावर्जनिक स्थल तथा ऐतिहासिक स्थानों की स्वच्छता तथा गरिमा नष्ट भ्रष्ट या विकृत न करे। 2. दूसरों के प्रति कर्तव्य-अपनी आत्मा और शरीर के अतिरिक्त अन्य सभी दूसरे हैं। इनसे सामंजस्य स्थापित करना हमारा कर्तव्य है। इन दूसरों में परिवार, देश, समाज, मानव जाति और यहाँ तक कि पेड़-पौधे आदि भी सम्मिलित हैं। परिवार में माता-पिता, दादा-दादी, भाई-बहिन आदि बहुत से सदस्य होते हैं। उनके प्रति अपना कर्तव्य निभाना, जैसे-बड़ों के प्रति सम्मान और छोटों के प्रति प्रेम, सेवा, सहयोग आदि। इसी प्रकार समाज के अन्य व्यक्तियों के प्रति भी ईमानदारी, प्रामाणिकता, सहयोग आदि व्यक्ति का कर्तव्य है। राष्ट्र आदि के प्रति भी व्यक्ति के विभिन्न प्रकार के कर्तव्य हैं। जहाँ तक पेड़-पौधों का प्रश्न है तो उनकी रक्षा करना, उन्हें व्यर्थ ही नष्ट न करना व्यक्ति का प्रमुख कर्तव्य है। इसका कारण यह है कि वृक्ष मानव के लिए बहुत उपयोगी हैं। ये मानव को फल-फूल देते हैं, वातावरण को स्वच्छ बनाते हैं, कार्बन-डाई-ऑक्साइड को सोखकर ऑक्सीजन उत्सर्जित करते हैं, जो मानव को जीवन रहने के लिए अति आवश्यक है। साथ ही ये मेघों को आकर्षित करते हैं, इनके कारण बरसात होती है, भूमि में नमी रहती है और भूमि का कटाव रुकता है, अच्छी फसल उत्पन्न होती है। इन सभी कारणों से नव्य नैतिकवादी ड्यूई आदि ने वृक्ष-संरक्षण को मानव के नैतिक कर्तव्यों में प्रमुख स्थान दिया है। 3. आत्मा के प्रति कर्तव्य-कुछ विद्वानों ने इसे ईश्वर के प्रति कर्तव्य कहा है और इसमें नित्य देवार्चन आदि को सम्मिलित किया है। किन्तु वास्तविक रूप में ये स्वयं अपनी आत्मा के प्रति कर्तव्य हैं, देव-शास्त्र गुरु की श्रृद्धा भक्ति, इष्ट मन्त्र के जाप आदि जितने भी अनुष्ठान हैं उनसे व्यक्ति की स्वयं की आत्मा की उन्नति होती है, उनमें नैतिक साहस और आत्म-बल बढ़ता है। व्यक्ति को सच्चाई, अहिंसा आदि पर दृढ़ रहने की शक्ति उपलब्ध होती है। ये सभी आत्मिक लाभ हैं, इसीलिए इन सबको आत्मा के प्रति कर्तव्यों में यहाँ परिगणित किया है।
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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