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________________ अधिकार-कर्त्तव्य और अपराध एवं दण्ड / 391 कर्तव्यों का वर्गीकरण (Classification of Duties) काण्ट ने कर्तव्य का वर्गीकरण दो भेदों में किया-1. पूर्णबाध्यता-मूलक (Perfect obligation) और अपूर्णबाध्यतामूलक (Imperfect obligation). पूर्णबाध्यता मूलक कर्तव्यों में वह चोरी न करना, किसी व्यक्ति की हत्या न करना आदि कार्यों की गणना करता है। और परोपकार, समाज, देश, व्यक्ति की सेवा आदि को वह अपूर्णबाध्यतामूलक कर्तव्य मानता है। वस्तुतः पूर्ण बाध्यतामूलक कर्तव्य वे हैं, जिनको अवश्य ही करना पड़ता है, इनका उल्लंघन करने पर समाज अथवा राज्य दण्ड देता है और अपूर्णबाध्यतामूलक कर्तव्यों को व्यक्ति से स्वेच्छापूर्वक करता है। ___काण्ट के इस वर्गीकरण से यह धारणा प्रतिफलित होती है कि पूर्णबाध्यतामूलक कर्तव्य कानूनी (legal) हैं और अपूर्णबाध्यतामूलक कर्तव्य नैतिक (moral) हैं। जबकि नैतिकता इन दोनों को स्वीकार नहीं करती, क्योंकि नीति में दण्ड अथवा भय को कोई स्थान नहीं है। नैतिक व्यक्ति का सत्य बोलना, हिंसा न करना, परोपकार, सेवा आदि जितने भी कार्य अथवा कर्तव्य हैं, वे सब स्वैच्छिक हैं, इन नैतिकताओं का पालन वह अपनी आन्तरिक इच्छा से करता है, किसी अन्य बाहरी दबाव से नहीं। और उसकी नैतिक प्रतिबद्धता को ही बाध्यता (obligation) कहा जा सकता है, यदि कहना ही चाहें। कुछ विद्वानों ने कर्तव्यों को तीन वगों में विभाजित किया है 1. स्वयं अपने प्रति कर्तव्य-इसमें अपनी आत्मा और शरीर के प्रति सभी प्रकार के कर्तव्य निहित हैं, यथा-भौतिक, बौद्धिक, आर्थिक, नैतिक और कलात्मकता के कर्तव्य। जैसे-हमें आत्महत्या का अधिकार नहीं, अपितु अपने जीवन का सम्मान करना हमारा कर्तव्य है। इसी प्रकार आर्थिक समृद्धि और बौद्धिक उन्नति भी हमारा कर्तव्य है। साथ ही नैतिक जीवन व्यतीत करना भी हमारा प्रमुख कर्तव्य बौद्धिक विकास के लिए ज्ञानार्जन करना, वृद्ध और अनुभवियों की शिक्षा मानना भी हमारे नैतिक कर्तव्य हैं। कलात्मकता का अभिप्राय नीति के सन्दर्भ में सुरुचि संपन्नता है।
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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