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________________ 386 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन आदि की सम्पत्ति को तोड़ना, फोड़ना जिस हेतु सम्पत्ति दी गई है उसे अन्य कार्यों में खर्च देना दूसरों की सम्पत्ति का दुरुपयोग है। नागरिक शास्त्र में ऐसे व्यक्ति को बुरा नागरिक कहा गया है, तो समाज विज्ञान (Sociology) और राजनीति विज्ञान (Political Science) में असामाजिक तत्व तथा नीतिशास्त्र में अनैतिक अथवा दुर्नेतिक व्यक्ति की उसे संज्ञा दी है। जैन दृष्टि इस विषय में बिल्कुल स्पष्ट है। मार्गानुसारी के लोगों में स्पष्ट कहा गया है कि व्यक्ति को निन्दनीय आचारण नहीं करना चाहिए और संपत्ति का अपहरण तथा दुरुपयोग करना एवं उसका सम्मान न करना निंदनीय आचरण ही है। और चोरी करना तो सर्वथा अनैतिक है, पाप है। (4) सामाजिक व्यवस्था का सम्मान (Respect of Social order) ___ समाज की सुव्यवस्था हेतु और उसके सुसंचालन के लिए समाज ने जिन संस्थाओं को मान्यता दी है, उनका सम्मान करना व्यक्ति का नैतिक कर्तव्य है। उदाहरण के लिए धार्मिक संस्थाओं, समाज कल्याणकारी संस्थाओं और ऐसे रीति-रिवाज जिनसे समाज को गति मिलती है, व्यक्ति की उन्नति होती है उनका सम्मान प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए। इन संस्थाओं में तोड़-फोड़ करना, उनका विरोध करना अथवा नष्ट करना अनैतिकता है। इसका अभिप्राय यह भी है कि जो संस्थाए अथवा रूढ़ियाँ देश अथवा समाज के लिए हानिकारक हों, जिनसे परिवार में बिखराव होता हो, उनका विरोध करे और उन्मूलन का प्रयास करे। ऐसी कुप्रथाएँ आज के भारतीय समाज में दहेज आदि हैं। इसको जैन नीति के व्यावहारिक बिन्दुओं में ‘अदेशकालयोश्चर्या' शब्द से कहा गया है, जिनका अभिप्राय है व्यक्ति को देश ओर काल के विपरीत आचारण नहीं करना चाहिए। (5) सामाजिक प्रगति का सम्मान (Respect for Social Progress) यह कर्तव्य प्रगति से संबंधित है। मैकेन्जी ने इस कर्तव्य का स्पष्टीकरण करते हुए कहा है-“तुम अपने विशेष क्षेत्र में सम्पूर्ण हृदय, सम्पूर्ण आत्मा, सम्पूर्ण बल और सम्पूर्ण मन लगाकर परिश्रम करो।" 1. अप्रवृत्तश्च गर्हिते। -योगशास्त्र, 1/50 2. उद्धृत जे.एन. सिन्हा : नीतिशास्त्र, पृ. 274
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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