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अधिकार-कर्त्तव्य और अपराध एवं दण्ड / 385
प्रकार का कष्ट न दे, उनके जीवन का हनन न करे, उनके जीवन की रक्षा करे।
जैन नीति का तो यह आधारबिन्दु ही है। कहा गया है किसी भी प्राणी के प्राणों का हनन न करे, उन पर अनुचित अनुशासन न करे, उनको अपने अधीन न बनाये, उन्हें परिताप न दे और किसी प्रकार का उपद्रव न करे।
इस प्रकार जैन नीति के इन शब्दों में प्राणी मात्र के जीवन और जीवन से सम्बन्धित सभी बातों के प्रति स्पष्ट शब्दों में सम्मान बता दिया गया है।
(2) चरित्र का सम्मान (Respect of Character)
नीति का यह कर्तव्य बहुत ही महत्वपूर्ण है। यहाँ चरित्र का अभिप्राय सच्चरित्र है। सच्चरित्र का सम्मान समाज में नैतिक वातावरण का प्रसार करता है।
हीगेल ने कहा है-व्यक्ति बनो, और दूसरे को भी व्यक्ति समझकर उनका सम्मान करो। व्यक्ति बनने से हीगेल का अभिप्राय अच्छे व्यक्ति से है। अतः मानव मात्र का कर्तव्य है कि स्वयं नैतिक आचरण करे और अन्य व्यक्तियों को नैतिक बनने में सहायक बने।
(3) सम्पत्ति का सम्मान (Respect of Property)
जिस प्रकार व्यक्ति को संपत्ति-सुरक्षा का अधिकार है, उसी प्रकार उसका कर्तव्य है कि अन्य व्यक्तियों की सम्पत्ति का सम्मान करे।
सम्पत्ति के सम्मान में सम्पत्ति का अपहरण और दुरुपयोग न करना-दोनों ही बातें सन्निहित हैं। अपहरण दूसरे की सम्पत्ति का किया जाता है। ऐसी सम्पत्ति किसी व्यक्ति की भी हो सकती है और जाति, समाज, राष्ट्र, धार्मिक और समाजसेवी संस्था की भी।
अपहरण के लिए नीति और धर्म में चोरी शब्द दिया गया है और चोरी करना पाप है, अनैतिकता है।
दुरुपयोग अपनी सम्पत्ति का भी किया जा सकता है और दूसरों की सम्पत्ति का भी। दुर्व्यसन आदि में अपनी उपार्जित अथवा पैतृक सम्पत्ति, सम्पत्ति को बरबाद करना अपनी सम्पत्ति का दुरुपयोग है तथा राष्ट्र, समाज 1. सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता, न हलव्वा, न अज्जवावेयव्वा, न परिषेतव्वा, न पारियावेयव्या, न उद्दवेयव्वा।
-आचारांग सूत्र, 1