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________________ 384 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन (6) स्वतन्त्रता का अधिकार (Right of Freedom) स्वतन्त्रता का अभिप्राय है-संकल्प की स्वतंत्रता (freedom of will)। मानव को नैतिक आचरण के लिए संकल्प की स्वतंत्रता अनिवार्य है। इसीलिए यह नीतिशास्त्र का मौलिक प्रत्यय माना गया है। व्यक्ति किसी भी नैतिक आचरण का पहले मन में संकल्प करता है, यथा 'मैं सत्य बोलूँगा' और तदनुसार सत्य वचन बोलता है। यदि उसकी संकल्प की स्वतंत्रता और स्वीकार न किया जाये तो नैतिक आचरण का प्रश्न ही नहीं है। नीतिशास्त्र में स्वतंत्रता के अधिकार का यही अभिप्राय है। स्वतंत्रता के साथ ही नीतिशास्त्र में दायित्व का प्रत्यय भी जुड़ा हुआ है। व्यक्ति का कर्तव्य है कि अपने स्वतंत्रता के अधिकार के साथ-साथ अन्य लोगों की स्वतंत्रता का भी सम्मान करे। अन्य किसी की स्वतंत्रता में किसी भी प्रकार से बाधन न बने। लेकिन इसका भी एक अपवाद है। व्यक्ति किसी को समाजविरोधी अथवा अनैतिक आचरण करते देखकर उसे रोक सकता है, उसकी स्वच्छन्दता में बाधक बन सकता और सदाचरण आदि की प्रेरणा दे सकता है। यथा माता-पिता-शिक्षक बालक की गलत प्रवृत्तियों पर रोक लगाकर उसे शिक्षा प्राप्ति के लिए, सदाचरण के लिए प्रेरित कर सकते हैं। इसी सिद्धान्त के अनुसार राज्य भी असामाजिक तत्वों की स्वतंत्रता का हनन कर लेता है। नैतिक कर्तव्य (Moral Duties) ___अधिकारों के साथ कर्तव्य भी जुड़े हुए हैं। जिस प्रकार मानव के कुछ नैतिक अधिकार हैं, तो उसके कुछ कर्तव्य भी हैं। इन कर्तव्यों का पालन अनिवार्य है। प्रमुख कर्तव्य निम्न हैं(1) जीवन का सम्मान (Respect of Life) जिस प्रकार मानव को जीने का अधिकार है उसी प्रकार उसका कर्तव्य है कि अन्य प्राणियों के जीवन का सम्मान करे, उन्हें किसी 1. भारतीय संविधान में जो नागरिकों के मौलिक अधिकार वर्णित किये गये हैं, उनमें से अधिकांश यही अधिकार हैं। -लेखक
SR No.002333
Book TitleNitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherUniversity Publication Delhi
Publication Year2000
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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