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378 / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
ममत्व कम होगा, वे धन को समाज की धरोहर समझेंगे और इसलिए संचय भी कम होगा, परिणामस्वरूप वर्ग संघर्ष की स्थिति ही उत्पन्न नहीं होगी ।
इन सभी नियमों और सिद्धान्तों के परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि गांधीजी की सम्पूर्ण नीति का आधार अहिंसा है ।
उपसंहार
इस सम्पूर्ण विवेचन और विभिन्न नैतिक वादों तथा जैन नीति के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट है कि इन सभी वादों के बीज जैन तीन में निहित है । यह अवश्य है कि किसी वाद में ये बीज अधिक प्रत्यक्ष हैं तो किसी से
कम ।
सारांशतः कहा जा सकता है कि जैन नीति अपने आप में पूर्ण है, सक्षम है और अपनी विशुद्धता, विशालता और विराट स्वरूप के कारण अन्य सभी वादों में इसका प्रभाव झलकता है।