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अधिकार-कर्त्तव्य और अपराध एवं दण्ड (RIGHTS, DUTIES AND CRIME PUNISHMENT)
नीतिशास्त्र की दृष्टि से 'कर्तव्य' एक उभयमुखी शब्द है। दैनिक जीवन में भी प्रसंगानुसार इसके अर्थ बदल जाते हैं। जैसे एक ओर यह अधिकार से सम्बन्धित है तो दूसरी ओर दण्ड से भी। कर्त्तव्य यदि सही ढंग से सम्पन्न किये जांय तो व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के अधिकारों की प्राप्ति होती है और यदि कर्तव्यों का पालन न किया जाय अथवा सही ढंग से पालन न किया जाय तो व्यक्ति धिक्कार और तिरस्कार का पात्र बनता है और दण्ड का भी भागी हो जाता है।
इसीलिए नीतिशास्त्र में कर्त्तव्यों पर विशेष बल प्रदान किया गया है। अपने कर्तव्यों को उचित रीति से पालन करने वाले व्यक्ति को समाज में नैतिक माना जाता है। अधिकार और कर्तव्य
नीतिशास्त्र के अनुसार अधिकार समाज द्वारा स्वीकृत व्यक्ति अथवा व्यक्तियों की नैतिक मांगें (Moral needs) हैं। बोसांके (Bosanquet) कहता है-“कर्तव्य समाज द्वारा स्वीकृत व्यक्तियों के नैतिक ऋण हैं और अधिकार समाज द्वारा स्वीकृत माँगे हैं।"
वास्तव में अधिकार, वे शक्तियां अथवा उपलब्धियां हैं जो सुचारु जीवन यापन के लिए, सभी प्रकार की भौतिक तथा आध्यात्मिक उन्नति के लिए आवश्यक हैं और कर्तव्य उन अधिकारों का सम्मान करने के लिए अन्य व्यक्तियों की नैतिक बाध्यता (Moral obligations) हैं।